बस्तियों से खदेड़े गये ओ, मेरे पुरखो तुम चुप रहे उन रातों में जब तुम्हें प्रेम करना था आलिंगन में बाँधकर अपनी पत्नियों को तुम तलाशते रहे मुट्ठी भर चावल सपने गिरवी रखकर https://poshampa.org/mutthi-bhar-chawal-a-poem-by-omprakash-valmiki/ 97 views06:15