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नवीनतम संदेश 6
2021-02-01 08:05:56 आज की प्रेरणा
अच्छा हृदय और अच्छा स्वभाव दोनों आवश्यक है वो इसलिए क्योंकि अच्छे हृदय से कई रिश्ते बनेंगे और अच्छे स्वभाव से ये रिश्ते जीवन भर निभेंगे।
*आज से हम* अपने अच्छे हृदय और अच्छे स्वभाव द्वारा अपने हर रिश्ते को अच्छा बनाएँ और उन्हें निभाएँ...
TODAY'S INSPIRATION
It’s necessary to have both a good heart and a good nature. That’s because with good heart, many good relationships are built and with good nature, those good relationships are sustained!
TODAY ONWARDS LET'S build and sustain good relationships with our good hearts and good nature…
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एक आदमी जंगल से गुजर रहा था। उसे चार स्त्रियां मिली। उसने पहली से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ? उसने कहा "बुद्धि " तुम कहां रहती हो ? मनुष्य के दिमाग में।
दूसरी स्त्री से पूछा - बहन तुम्हारा नाम क्या हैं ? " लज्जा "। तुम कहां रहती हो ? आंख में।
तीसरी से पूछा - तुम्हारा क्या नाम हैं ? "हिम्मत" कहां रहती हो ? दिल में।
चौथी से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ? "तंदुरूस्ती" कहां रहती हो ? पेट में।
वह आदमी अब थोडा आगे बढा तों फिर उसे चार पुरूष मिले। उसने पहले पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ? " क्रोध " कहां रहतें हो ? दिमाग में। दिमाग में तो बुद्धि रहती हैं, तुम कैसे रहते हो ? जब मैं वहां रहता हूं तो बुद्धि वहां से विदा हो जाती हैं।
दूसरे पुरूष से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ? उसने कहां - "लोभ"। कहां रहते हो ? आंख में। आंख में तो लज्जा रहती हैं तुम कैसे रहते हो। जब मैं आता हूं तो लज्जा वहां से प्रस्थान कर जाती हैं।
तीसरें से पूछा - तुम्हारा नाम क्या हैं ? जबाब मिला "भय"। कहां रहते हो ? दिल में। दिल में तो हिम्मत रहती हैं तुम कैसे रहते हो ? जब मैं आता हूं तो हिम्मत वहां से नौ दो ग्यारह हो जाती हैं।
चौथे से पूछा तुम्हारा नाम क्या हैं ? उसने कहा - "रोग"। कहां रहतें हो ? पेट में। पेट में तो तंदरूस्ती रहती हैं, जब मैं आता हूं तो तंदरूस्ती वहां से रवाना हो जाती हैं।
शिक्षा:-
मित्रों... जीवन की हर विपरीत परिस्थिति में यदि हम उपरोक्त वर्णित बातों को याद रखें तो कई चीजें होने से रोकी जा सकती हैं।
सदैव प्रसन्न रहिये। जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
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एक दिन एक व्यक्ति ऑटो से रेलवे स्टेशन जा रहा था। ऑटो वाला बड़े आराम से ऑटो चला रहा था कि अचानक ही एक कार पार्किंग से निकलकर रोड़ पर आ गयी। ऑटो चालक ने तेजी से ब्रेक लगाया और कार, ऑटो से टकराते टकराते बची। कार चालक गुस्से में कार से निकला और ऑटो वाले को ही भला बुरा कहने लगा जबकि गलती कार- चालक की खुद की थी। ऑटो वाले ने कार वाले की बातों पर गुस्सा नहीं किया और उल्टा मुस्कराते हुए आगे बढ़ गया।
ऑटो में बैठे व्यक्ति को कार वाले की हरकत पर गुस्सा आ रहा था और उसने ऑटो वाले से पूछा तुमने उस कार वाले को बिना कुछ कहे ऐसे ही क्यों जाने दिया। उसने तुम्हें भला बुरा कहा जबकि गलती तो उसकी थी। ऑटो वाले ने कहा- हमारी किस्मत अच्छी है, नहीं तो उसकी वजह से हम अभी अस्पताल में होते।
लोग, गार्बेज ट्रक (कूड़े का ट्रक) की तरह होते हैं-
ऑटो वाले ने कहा साहब बहुत से लोग गार्बेज ट्रक (कूड़े का ट्रक) की तरह होते हैं। वे बहुत सारा कूड़ा अपने दिमाग में भरे हुए चलते हैं – हमेशा निराशा, क्रोध और चिंता से भरे हुए नकारात्मक रवैया अपनाते हैं । जब उनके दिमाग में निराशा रूपी कूड़ा बहुत अधिक हो जाता है तो वे अपना बोझ हल्का करने के लिए इसे दूसरों पर फेंकने का मौका ढूँढ़ने लगते हैं ।
इसलिए मैं ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखता हूँ और उन्हें दूर से ही मुस्कराकर अलविदा कह देता हूँ क्योंकि अगर उन जैसे लोगों द्वारा गिराया हुआ कूड़ा अगर मैंने स्वीकार कर लिया तो मैं भी एक गार्बेज ट्रक बन जाऊँगा और अपने साथ साथ आसपास के लोगों पर भी निराशा रूपी कूड़ा गिराता रहूँगा। जिंदगी बहुत छोटी है जो हमसे अच्छा व्यवहार करते है उन्हें धन्यवाद कहो और जो हमसे अच्छा व्यवहार नहीं करते, उन्हें मुस्कुराकर माफ़ कर दो।
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एक प्रसिद्ध राजा था जिसका नाम रामधन था। अपने नाम की ही तरह प्रजा सेवा ही उसका धर्म था। उनकी प्रजा भी उन्हें राजा राम की तरह ही पुजती थी। राजा रामधन सभी की निष्काम भाव से सहायता करते थे फिर चाहे वो उनके राज्य की प्रजा हो या अन्य किसी राज्य की।
उनकी ख्याति सर्वत्र थी। उनके दानी स्वभाव और व्यवहार के गुणगान उसके शत्रु राजा तक करते थे। उन राजाओं में एक राजा था भीम सिंह, जिसे राजा रामधन की इस ख्याति से इर्ष्या थी।
उस इर्ष्या के कारण उसने राजा रामधन को हराने की एक रणनीति बनाई और कुछ समय बाद रामधन के राज्य पर हमला कर दिया। भीम सिंह ने छल से युद्ध जीत लिया और रामधन को जंगल में जाना पड़ा। इतना होने पर भी रामधन की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं थी।
हर जगह उन्हीं की बातें चलती थी। जिससे भीम सिंह को चैन न था उसने राजा रामधन को मृत्युदंड देने का फैसला किया। उसने ऐलान किया कि जो राजा रामधन को पकड़ कर उसके सामने लायेगा वो उसे सौ सोने की दीनार देगा।
दूसरी तरफ, राजा रामधन जंगलों में भटक रहे थे। तब उन्हें एक राहगीर मिला और उसने कहा– भाई ! तुम इसी जगह के लगते हो। क्या मुझे राजा रामधन के राज्य की तरफ का रास्ता बता सकते हो ?
राजा रामधन ने पूछा– तुम्हें क्या काम है राजा से ? तब राहगीर ने कहा– मेरे बेटे की तबियत ठीक नहीं उसके इलाज में सारा धन चला गया। सुना है राजा रामधन सभी की मदद करते हैं सोचा उन्हीं के पास जाकर याचना करूँ।
यह सुनकर राजा रामधन राहगीर को अपने साथ लेकर भीम सिंह के पास पहूँचे। उन्हें देख दरबार में सभी अचंभित थे। राजा रामधन ने कहा– हे राजन ! आपने मुझे खोजने वाले को सौ दीनार देने का वादा किया था। मेरे इस मित्र ने मुझे आपके सामने पेश किया है। अतः इसे वो सौ दीनार दे दें।
यह सुनकर राजा भीम सिंह को अहसास हुआ कि राजा रामधन सच में कितने महान और दानी हैं। और उसने अपनी गलती को स्वीकार कर साथ ही साथ राजा रामधन को उनका राज्य लौटा दिया और सदा उनके दिखाये रास्ते पर चलने का फैसला किया।
दोस्तों इसी को कहते हैं “कर भला तो हो भला।"
कहाँ एक तरफ भीम सिंह राजा रामधन को मारना चाहता था और अंत में राजा रामधन की करनी देख वो लज्जित हुआ और उन्हें उनका राज्य लौटा दिया और स्वयं को उनके जैसा बनाने में जुट गया।
महान लोग सही कहते हैं *“कर भला तो हो भला”।* रामधन की करनी का ही फल था जो वो हारने के बाद भी जीत गया। उसने जिस तरह सभी की मदद की उसकी मदद अंत में उसी के काम आई।
शिक्षा:-
इसलिए कहते हैं मनुष्य को अपने कर्मों का ख्याल करना चाहिये। अगर आप अच्छा करोगे तो अच्छा ही मिलेगा। माना कि कष्ट होता है लेकिन अंत सदैव अच्छा होता है।
सदैव प्रसन्न रहिये। जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
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एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ भ्रमण कर रहे थे। वे चलते चलते एक गांव के पास स्थित एक बगीचे में पहुंचे। बुद्ध के आने की खबर आसपास के गांवों में पहुंच गई और देखते ही देखते उनके दर्शन को हजारों लोग एकत्रित हो गए।
वे सभी बुद्ध का दर्शन पाकर बेहद प्रसन्न हुए और वे सभी बुद्ध की अमृतवाणी सुनने की आस में वहीं उनके निकट बैठ गए। बुद्ध अपने शिष्यों के साथ मौन बैठे थे। शिष्यों के साथ वहां बैठे सभी लोग बुद्ध से कुछ सुनने की आस लगाए बैठे थे, परंतु बुद्ध तो अपने आप में ही खोए अभी भी मौन बैठे थे। शिष्यों को लगा कि तथागत कहीं अस्वस्थ तो नहीं है?
आखिर एक शिष्य ने उनसे पूछ ही लिया- तथागत, आज आप शांत क्यों बैठे हैं? आपको सुनने की प्रतीक्षा में यहां दूर-दूर से आए हजारों लोग बैठे हैं। फिर आप मौन क्यों हैं ? क्या हममें से किसी शिष्य से ऐसी गलती हो गई है, जिससे कि आप नाराज हैं ? तभी किसी अन्य शिष्य ने पूछा- भगवन, कहीं आप अस्वस्थ तो नहीं हैं ? परंतु बुद्ध अभी भी मौन थे। सच तो यह था कि हर पल आनंद में स्थित रहने वाले बुद्ध न तो नाराज थे और न ही अस्वस्थ।
वे तो सभा में बैठे हुए हजारों लोगों के चित्त के चित्र को अपने ध्यानस्थ नेत्रों से पलभर में ही देख रहे थे कि सभा में बैठे प्रत्येक व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है ? उसके चित्त की दशा क्या है ? इसलिए वे अपने तरीके से ही लोगों के चित्त की शल्यक्रिया किया करते थे। वे अपने तरीके से लोगों की मानसिक उलझनों को दूर करने का प्रयास करते थे।
उस समय वेमौन में ही सभा में बैठे किसी व्यक्ति के मन से उठ रही क्रोध की अदृश्य चिंगारी को देख रहे थे। वे अभी भी शांत ही बैठे थे कि तभी सभा से कुछ दूरी पर खड़ा एक व्यक्ति जोर चिल्लाया-'आज मुझे सभा में बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी गई है? मुझे प्रवेश की अनुमति क्यों नहीं मिली?' इसी बीच एक शिष्य ने उसका पक्ष लेते हुए कहा कि उस व्यक्ति को सभा में आने की अनुमति प्रदान की जाए।'
बुद्ध मौन से बाहर आए और बोले- 'नहीं, उसे सभा में आने की आज्ञा नहीं दी जा सकती है।' यह सुन शिष्यों के साथ वहां बैठे सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। करुणा और प्रेम की प्रतिमूर्ति महात्मा बुद्ध द्वारा किसी को अनुमति न दिया जाना वास्तव में सबके लिए आश्चर्यजनक था।
बुद्ध की दृष्टि में तो मानव-मानव में कोई भेद नहीं था। बुद्ध की यह प्रतिक्रिया निश्चित ही सबको विस्मय और आश्चर्य में डालने वाली थी। बुद्ध अपने शिष्यों के साथ वहां बैठे सभी लोगों के मनोभावों को बखूबी समझ रहे थे। इसलिए बुद्ध ने कहा- 'इस व्यक्ति के अंदर अदृश्य रूप में क्रोध की ज्वाला तो पहले से ही धधक रही थी, जो अब बाहर प्रकट हो रही है। जैसे- अग्नि अपने संपर्क में आनेवाली हर चीज को भस्मीभूत कर देती है, वैसे ही क्रोधी व्यक्ति के भीतर से निकलकर आसपास के लोगों में भी क्रोध की चिंगारी सुलगा देती है । इसलिए क्रोधी व्यक्ति को छूने से कोई भई जल सकता है और अपनी हानि कर सकता है।'
बुद्ध आगे बोले- 'क्रोध पलभर में ही व्यक्ति की सारी अच्छाई को नष्ट कर सकता है और उससे कुछ भी अनिष्ट करवा सकता है । क्रोध की अग्नि पल भर में ही व्यक्ति के भीतर की करुणा और प्रेम जैसी उच्चतर भावनाओं को सोख लेती है।
क्रोध, हिंसा का ही प्रकट रूप है। जिस व्यक्ति में क्रोध की अग्नि जल रही है, वह व्यक्ति अहिंसक हो ही नहीं सकता। भला जो स्वयं को अपने क्रोध की चिंगारी से पल-पल जला रहा हो, वह दूसरों के साथ अहिंसक कैसे हो सकता है।
इसलिए ऐसे व्यक्ति को सभा से, समूह से समाज के दूर ही रहना चाहिए।' सभा में बैठे क्रोधी व्यक्ति को अब अपनी गलती का एहसास हो चुका था । वह दौड़ता हुआ आया व बुद्ध के चरणों में माथा टेककर बिलखने लगा ।
प्रेम और करुणा की प्रतिमूर्ति बुद्ध ने उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरा और बोले-वत्स, क्रोध दहकते हुए उस कोयले के समान है, जिसे व्यक्ति दूसरों को जलाने के लिए अपने पास,अपने अंदर रखे रहता है और उससे हर पल वह स्वयं ही जलता रहता है, इसलिए क्रोध से बाहर निकलो। अपने अंदर प्रेम करुणा और सहिष्णुता के जल को भरकर अपने भीतर जल रही क्रोध को अग्नि को, चिंगारी को सदा-सदा के लिए बुझा सकते हों। क्रोध के शांत होते ही, समाप्त होते ही तुम शांति को प्राप्त होगे और तुम्हें तुम्हारे अंदर से ही सुख की प्राप्ति होने लगेगी।
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एक व्यक्ति को किसी बड़े पद पर नौकरी मिल गयी। वह इस नौकरी से खुद को और बड़ा समझने लगा, लेकिन वह कभी भी खुद को बड़े पद के मुताबिक़ नहीं ढाल सका। एक दिन वह अपने ऑफिस में बैठा था, तभी बाहर से उसके दरवाजे को खटखटाने की आवाज आई। खुद को बहुत व्यस्त दिखाने के लिए उसनें टेबल पर रखे टेलीफोन को उठा लिया और जो व्यक्ति दरवाजे के बाहर खड़ा था उसे अन्दर आने के लिए कहा। वह अन्दर आकर इंतजार करने लगा, इस बीच कुर्सी पर बैठा अधिकारी फ़ोन पर चिल्ला-चिल्ला कर बात कर रहा था।
बीच-बीच में वह फोन पर कहता, कि मुझे वह काम जल्दी करके देना, टेलीफोन पर अपनी बातों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा था। ऐसे ही कुछ मिनट तक बात करने के बाद उस आदमी ने फ़ोन रखा और सामने वाले व्यक्ति से उसके ऑफिस आने की वजह पूछी। उस आदमी ने अधिकारी को जवाब देते हुए कहा, “सर, मुझे बताया गया था कि 3 दिनों से आपके इस ऑफिस का टेलीफ़ोन ख़राब है और मैं इस टेलीफ़ोन को ठीक करने के लिए आया हूँ।”
शिक्षा:-
दोस्तों इस कहानी में एक बड़ा मेसेज छिपा है कि हमें कभी भी दिखावा नहीं करनी चाहिए। हम दिखावा करके क्या साबित करना चाहते हैं, इससे हम कभी भी कुछ हासिल नहीं कर सकते, हमें किसी के सामने झूठ बोलने की क्या जरूरत! दिखावा करके हम खुद की नजरों में कभी भी ऊपर नहीं उठ सकते। दिखावा करने से बचिए क्योंकि इससे लोग पीठ पीछे आपकी ही बुराई करेंगे। मुखौटा मत लगायें।
अत्त दीपो भव भवतू सब्ब मंगलं
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बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में एक किसान रहता था. उस किसान की एक बहुत ही सुन्दर बेटी थी. दुर्भाग्यवश, गाँव के जमींदार से उसने बहुत सारा धन उधार लिया हुआ था. जमीनदार बूढा और कुरूप था. किसान की सुंदर बेटी को देखकर उसने सोचा क्यूँ न कर्जे के बदले किसान के सामने उसकी बेटी से विवाह का प्रस्ताव रखा जाये.
जमींदार किसान के पास गया और उसने कहा– तुम अपनी बेटी का विवाह मेरे साथ कर दो, बदले में मैं तुम्हारा सारा कर्ज माफ़ कर दूंगा. जमींदार की बात सुन कर किसान और किसान की बेटी के होश उड़ गए. तब जमींदार ने कहा– चलो गाँव की पंचायत के पास चलते हैं और जो निर्णय वे लेंगे उसे हम दोनों को ही मानना होगा. वो सब मिल कर पंचायत के पास गए और उन्हें सब कह सुनाया. उनकी बात सुन कर पंचायत ने थोड़ा सोच विचार किया और कहा-
ये मामला बड़ा उलझा हुआ है, अतः हम इसका फैसला किस्मत पर छोड़ते हैं. जमींदार सामने पड़े सफ़ेद और काले रोड़ों के ढेर से एक काला और एक सफ़ेद रोड़ा उठाकर एक थैले में रख देगा फिर लड़की बिना देखे उस थैले से एक रोड़ा उठाएगी और उस आधार पर उसके पास तीन विकल्प होंगे :
१. अगर वो काला रोड़ा उठाती है तो उसे जमींदार से शादी करनी पड़ेगी और उसके पिता का कर्ज माफ़ कर दिया जायेगा.
२. अगर वो सफ़ेद पत्थर उठती है तो उसे जमींदार से शादी नहीं करनी पड़ेगी और उसके पिता का कर्फ़ भी माफ़ कर दिया जायेगा.
३. अगर लड़की पत्थर उठाने से मना करती है तो उसके पिता को जेल भेज दिया जायेगा.
पंचायत के आदेशानुसार जमींदार झुका और उसने दो रोड़े उठा लिए. जब वो रोड़ा उठा रहा था तब तेज आँखों वाली किसान की बेटी ने देखा कि उस जमींदार ने दोनों काले रोड़े ही उठाये हैं और उन्हें थैले में डाल दिया है.
लड़की इस स्थिति से घबराये बिना सोचने लगी कि वो क्या कर सकती है, उसे तीन रास्ते नज़र आये:
१. वह रोड़ा उठाने से मना कर दे और अपने पिता को जेल जाने दे.
२. सबको बता दे कि जमींदार दोनों काले पत्थर उठा कर सबको धोखा दे रहा है.
३. वह चुप रह कर काला पत्थर उठा ले और अपने पिता को कर्ज से बचाने के लिए जमींदार से शादी करके अपना जीवन बलिदान कर दे.
उसे लगा कि दूसरा तरीका सही है, पर तभी उसे एक और भी अच्छा उपाय सूझा, उसने थैले में अपना हाथ डाला और एक रोड़ा अपने हाथ में ले लिया और बिना रोड़े की तरफ देखे उसके हाथ से फिसलने का नाटक किया, उसका रोड़ा अब हज़ारों रोड़ों के ढेर में गिर चुका था और उनमें ही कहीं खो चुका था.
लड़की ने कहा– हे भगवान ! मैं कितनी फूहड़ हूँ. लेकिन कोई बात नहीं. आप लोग थैले के अन्दर देख लीजिये कि कौन से रंग का रोड़ा बचा है, तब आपको पता चल जायेगा कि मैंने कौन सा उठाया था जो मेरे हाथ से गिर गया.
थैले में बचा हुआ रोड़ा काला था, सब लोगों ने मान लिया कि लड़की ने सफ़ेद पत्थर ही उठाया था. जमींदार के अन्दर इतना साहस नहीं था कि वो अपनी चोरी मान ले. लड़की ने अपनी सोच से असम्भव को संभव कर दिया.
शिक्षा:-
मित्रों, हमारे जीवन में भी कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जहाँ सब कुछ धुंधला दिखता है, हर रास्ता नाकामयाबी की ओर जाता महसूस होता है, पर ऐसे समय में यदि हम परम्परा से हट कर सोचने का प्रयास करें तो उस लड़की की तरह अपनी मुश्किलें दूर कर सकते हैं।
सदैव प्रसन्न रहिये। जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
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