2021-06-27 03:14:39
ना कभी वादों में बांधा है
ना कभी कसमों में उलझाया है
इश्क अगर आजादी है तो उसे परिंदा बनाके दिल के आसमान में आज़ाद छोड़ा है
कभी रस्मो के नाम पे जिम्मेदारी नहीं दिए
ना कभी रिश्तों के नाम पे उम्मीद रखीं गए
गमगुसारी की आस में कभी बैठा नही
में कभी विसाल के लिए तड़पा नही
मैं बस दीद का दीवाना था
उसके बातों का तलबगार था
उसके खुशबू में सुकून था
उसके आंखों में जादू था
उसके बाहों में जहां था
और मैं जाहा था उसके हकीकत से अंजान था
उससे कही दूर , दूसरे शहर में
उसकी यादों और तस्वीरों के सहारे जी रहा था
बस.. एक दिन उसने बहुत करीब आ कर दूर जाने की बात कर दी
पता नहीं उसे इश्क था भी या सिर्फ मजबुरी
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