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हिंदी मंच - सकारात्मक भाव

टेलीग्राम चैनल का लोगो hindi_manch — हिंदी मंच - सकारात्मक भाव
टेलीग्राम चैनल का लोगो hindi_manch — हिंदी मंच - सकारात्मक भाव
चैनल का पता: @hindi_manch
श्रेणियाँ: शिक्षा
भाषा: हिंदी
ग्राहकों: 1.90K
चैनल से विवरण

अगर आप रोजमर्रा की भागम भाग ज़िन्दगी से परेशान हो और आसान उपाय की खोज में हो,
तो हम आपकी दिमाग की थकान का एकदम सटीक इलाज करेंगे,
जी हां हमारे पोस्ट आपको कभी थकान महसूस नहीं होने देंगे, और जीवन में सफल होने के लिए कारगर साबित होंगे।

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नवीनतम संदेश 123

2021-04-19 05:09:09
266 views02:09
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2021-04-19 04:53:03
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2021-04-18 19:18:26
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2021-04-17 20:36:40
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2021-04-17 20:34:26
Lake house
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2021-04-17 20:23:01 फेमिली मेन !

आज इसकी आँखे , मेरी झिड़की से नम हो गईं ।

मुझे हो क्या जाता है ऑफिस से घर आते ही ? सब मर्द ऑफिस में काम करते हैं , क्या घर आकर वो भी अपनी पत्नी से ऐसे ही बातें करते हैं ।

बेचारी दिन भर मनाती है कि ऑफिस के काम के बीच मै टिफ़िन तो आराम से खा लूँ , आते समय हर ट्रैफिक सिग्नल ग्रीन मिले ताकि मैं जल्दी घर आ जाऊँ .. और मैं ? घर मे ऐसे घुसता हूँ जैसे लंका विजय कर आ रहा हूँ ! इस उम्र में काम न करूँगा तो कब करूँगा ? ऑफिस के लोग वेकेशन्स पर जाते हैं तो मैं क्यों नही मन पर लेता छुट्टी एप्लाई करने का ?
ऑफीस चलता ही रहेगा कोई बन्द थोड़े ही हो जाएगा ।

बाइक की आवाज़ पता नही कैसे जान जाती है ? मेरे हॉर्न मारने के पहले ही गेट खोल कर .. मुस्कुराती ज़रूर है ।

कभी इसी मुस्कुराहट पर मेरे मुंह से निकलता था .. ' हाय रे सदके जावाँ ! ' पर अब मुझे उसके उलझे बाल पसीना और टेन्स चेहरा ही क्यूँ दिखता है ? क्या सिर्फ बारा साल में मैं इतना बदल गया । दो दो छोटे बच्चो की परवरिश किसी को भी पागल बना सकती है ।

पिंकी तो चार साल की ही है और पिंकू दस साल का । दोनों बच्चों की माँगे अलग जिद अलग , शैतानियां भी अलग ।

बेचारी दिनभर चकरघिन्नी बनी रहती है , कितना कुछ होता होगा मुझे बताने के लिए उसके पास , पर मैं ? सड़ा मुँह लिए अंदर आता हूँ और .. पानी दो चाय बनाओ , चुप हो जाओ कहता धम्म से सोफे में धँस के आईपीएल देखने लगता हूँ !

वो घर मे आते ही आलिंगन चुम्बन वाले दिन कहाँ गये ? बारा वर्षों में मैं हीरो से विलेन कैसे बन गया ? ये तो घर भर की हीरोइन तब भी थी आज भी है ।

घर के सारे बिल्स यही पे करती है , घंटो पिंकी को समझाते बुझाते हुए लाइन में खड़ी रहती है , प्लम्बर से ले कर गैस सिलेंडर तक , कारपेंटर बुलाना हो या इलेक्ट्रिशयन , सब्ज़ी फल , मक्खन दूध ब्रेड सब मार्किट में जा कर लाती है , उपर से कामवाली बाई के नखरे बेवक्त छुट्टियां ।

पड़ौसी , रिश्तेदारी निभाना सुख दुख के व्यवहार , जन्मदिन की बधाईयां , बच्चो के स्कूल , पी एंड टी डे ! किताबें पढ़ाई और .. !

मेरा दम फूलने लगा था लिस्ट गिनते , और ये ..? ये बेचारी यही सब फेस कर रही थी । कितनी बातें होती होंगी मुझे बताने के लिए , मुझसे न कहे तो किससे कहेगी ?

वो भी एक वक्त था जब घर आते ही मैं कोंच कोंच कर इसे पूछता की बता दिन में क्या क्या किया ?

मैंने चारों तरफ देखा कहीं दिख नही रही थी , चाय पानी सामने रखा और पता नही क्या करने चली गयी थी ?

बेडरूम में थी ! मेरे बाइक का इयरली इन्षुरेन्स देना था उसके पेपर्स निकाल रही थी ! मेरी प्राण प्रिया को पता था कि ये बाइक उसकी लाइफ को लेकर आती जाती है ...!

मैंने बैडरूम का दरवाजा बंद किया और कुछ ही देर में ... इसका आँचल मेरी क्षमा वर्षा से भीग चुका था ! ये दुष्ट ख़ुद रोते हुए भी मुझे ही डांट रही थी ' आप रोते हुए मुझे बिल्कुल अच्छे नहीं लगते ' ।

बेवक्त बैडरूम का दरवाज़ा बन्द देख बच्चों का रोना धोना सुन हमारा अपना रोना रहस्यमयी मुस्कुराहट में बदल गया ।

गली के नुक्कड़ वाले मंदिर के फूलवाले के पास मोगरे के गजरे बहुत बढ़िया मिलते हैं ! मुझे पहली रात से ही बेहद पसंद हैं .. इसे भी !

आज से मैं हूँ फेमिली मेन हूँ ! मिलता हूँ .. फुर्सत से ! फेमिली फर्स्ट !

निरंजन धुलेकर ।
301 views17:23
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2021-04-17 14:16:49 आनन्द भाव प्रवाह
आंनद भाव प्रवाह में आप सभी को भक्ति के सब रस से मिलवाने का हमारा प्रयास रहे गा।
राधे राधे
https://t.me/anand_bhav
317 views11:16
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2021-04-17 12:33:27 खौफ के साये में आज हर शख्स जी रहा है

कब जिन्दगी से रूखसती हो जाए सोच के डर रहा है

क्या क्या जोड़ा था पर अब कुछ भी तो काम नहीं आ रहा है

अपनो की परवाह में रात दिन सो भी तो नहीं पा रहा है

कब किस से आखरी मुलाकात हो किसे पता ये भी समझ नही आ रहा है

मौत का आना तो तय था परअभी तो जीना सीख ही रहा है

कितना कुछ बाकी है पर अब सब मुश्किल सा नज़र आ रहा है

जिसका जाना तय है उसे रोकना तो मुनकिन नही है
पर खुदा की मर्जी के बिना पत्ता भी नही हिलता इसी बात पर भरोसा किए जा रहा है

खौफ के साय में हर शख्स जी रहा है

रेणु तिवारी "इति"
319 views09:33
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2021-04-16 20:23:01 चार पन्नो की किताब ...!

बताया गया कि क़िताब चार पन्नो की है अब तक तीन ही पन्ने पलटे जा चुके हैं ..

पहला पन्ना ,

उस दिन मैंने दाढ़ी बनाई ...पहली बार । ऐसा लग रहा था किसी नए द्वार में प्रवेश कर रहा हूँ , बालक से युवा .. पुरूष होने का । दिन में कई बार गाल पर हाथ फेरता रहता , यहाँ आ गयी वहाँ क्यूँ नही आयी ।

मूंछे रख लीं , शायद ताव मारने के लिए .. उन दिनों चंबल के मलखान और मोहर सिंह की तस्वीरें बहुत छपती थी अख़बारों में ।

हालांकि उस वक़्त की फिल्मों के किसी भी कुमार ने ये नही किया , सब पिताजी की उम्र के 'हीरो' थे ।उनकी आँखों में ख़ुशी और गर्व था , बेटा बड़ा हो गया । अपना दाढ़ी का सेट दिया और हिदायतें भी.. रेज़र पकड़ने की !

मेरा कमरा अलग हो चुका था , घर की बहस में बोलने लगा था , माँ को भी जवाब देने शुरू कर दिए थे । अपनी पसंद ना पसंद स्पष्ट होती जा रही थी । पढ़ाई का प्रेशर और घर में रहने का दबाव बढ़ता जा रहा था , दोनों ही पसंद नही आ रहे थे ।

बाहर की दुनिया मुझे बुलाती थी ,बहुत कुछ हो रहा था वहाँ , बहुत ही कुछ । पिताजी सब देख समझ रहे थे , पर माँ आसानी से मुझे बड़ा होने देने , छोड़ने को तैयार ही नहीं हो रही थी । पिताजी मुझे आने वाले समय के लिए तैयार कर रहे थे ,अपने पैरों पर खड़ा होना अपने हाथों से खुद के काम करने के लिए और ख़तरों से सावधान भी ।

दूसरा पन्ना ,

मैं घर छोड़ होस्टल के लिए अकेला ट्रैन में बैठ गया ।

डिब्बे की खिड़की के बाहर पिताजी चिंतित तो थे पर आंखों में माँ जैसे आँसू नही थे । माँ स्टेशन पर आना चाहती थीं , उन्होंने ही रोक दिया , छोड़ दो उसे आँचल के पिंजरे से उड़ने दो उसे अब खुले आसमान में !

आज हिदायत एक ही थी कि आँख कान खुले रखना , तुम्हे खुद को ही टोकना और रोकना भी है और ढालना है और पहचानना भी । जो चीज़ जैसी जहाँ रखोगे , ज़रूरी नही वो वहाँ मिले , गायब भी मिल सकती हैं ।

अब तुम्हे सब तुम्हारे नाम और काम से ही जानेंगे , मेरे बेटे के नाम से नही । हमने पढ़ाया , अब ज़िन्दगी तुम्हे पढ़ाएगी , क्या पढ़ोगे ये तुम्हे तय करना है । .. हम दोनों सीन से निकल रहे हैं । इधर , ट्रेन ने सिटी बजायी और मैं भी निकल पड़ा .... !

तीसरा पन्ना ,

जब मैंने पहली बार हेयर डाई लगाया । अब सड़क पर लोग भाई साहब की जगह चाचा बोलने लगे थे ।काले बालों ने जो कुछ दिया उसका बोझा सर पर रंग ला रहा था , ये अब आख़िर तक साथ देगा ।

काले से सफ़ेद होने तक का सफ़र बेहद उतार चढ़ाव भरा था , कभी दुःख , तकलीफ़ से भरा तो प्यार मनुहार वाला भी । जीवन मे संगिनी आयी, रौनक और बढ़ी , बच्चे भी आ गए !

मुझे रेज़र देने की ज़रूरत नही पड़ी , बेटे ने ही नए जमाने की शेविंग क्रीम और मशीन ला दी । ये सेफ है पापा यूज करिये , उसे फेंकिये फेंक दिया उसीने । उनकी डिमांड्स, बहुत अलग थीं ज़माने के हिसाब से । उनके गाने म्युज़िक , एन्जॉय करने के तऱीके भी एकदम अनजाने ।

रात बेरात आते और कमरा बन्द कर के .. जागते कभी एक कभी दो बज जाते । ख़ैर ,पढ़े लिखे और आगे बढ़ गए । वो बहस नहीं करते थे , बस बाहर निकल , जाते बिना बताए ।

' आप परेशान मत हुआ करिये .. वी विल डिसाइड अवर मैरिज ! ' वही किया भी और बच्चे अपने घोसले बनाने उड़ गए ।

सारी जिम्मेदारियां पूरी करते करते समय आ गया था अगली पायदान पर चढ़ने का जहाँ एक बार फ़िर से बस दो लोग ही रहने वाले थे ।

अब इंतज़ार है चौथे और आख़िरी पन्ने के पलटने का ! आगे लिखा क्या है ? पढूँ तो पता चले... फिर क़िताब बंद कर के सो जाऊँगा !

निरंजन धुलेकर ।
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2021-04-16 14:40:04
Yor know why i am crying?

Coz , no one like my post....
359 viewsedited  11:40
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