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अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस प्रतिवर्ष 1 मई को नए समाज के निर्म | Utkarsh Ramsnehi Gurukul

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस
प्रतिवर्ष 1 मई को नए समाज के निर्माण में श्रमिक और श्रमिकों के योगदान को चिह्नित करने के उद्देश्य से विश्व के कई हिस्सों में ‘मई दिवस’ (May Day) अथवा ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ मनाया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है जो अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों को स्थापित करने की दिशा में काम करती है।
19वीं शताब्दी में अमेरिका के ऐतिहासिक श्रमिक संघ आंदोलन में श्रमिक दिवस को मान्यता मिली।
सर्वप्रथम वर्ष 1889 में समाजवादी समूहों और ट्रेड यूनियनों के एक अंतर्राष्ट्रीय महासंघ ने शिकागो में हुई ‘हेमार्केट’ (Haymarket, 1886) घटना को याद करते हुए श्रमिकों के समर्थन में 1 मई को ‘मई दिवस’ के रूप में नामित किया था।
‘हेमार्केट’ घटना श्रमिकों के समर्थन में एक शांतिपूर्ण रैली थी जिसमें पुलिस के साथ हिंसक झड़प हुई जिसमें कई लोगों की मृत्यु हुई और कुछ लोग गंभीर रूप से घायल हुए। जिन लोगों की इस झड़प में मृत्यु हुई उन्हें ‘हेमार्केट शहीदों’ के रूप में सम्मानित किया गया।
जुलाई, 1889 में यूरोप में पहली ‘इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ़ सोशलिस्ट पार्टीज़’ द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें यह ऐलान किया गया कि 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस/मई दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इसके बाद 1 मई, 1890 को पहला मई दिवस मनाया गया था।
रूसी क्रांति (1917) के पश्चात् सोवियत संघ और पूर्वी ब्लॉक राष्ट्रों ने मज़दूर दिवस मनाना शुरू किया।
भारत में 1 मई, 1923 को पहली बार चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में मज़दूर दिवस का आयोजन किया गया। यह पहल सर्वप्रथम हिंदुस्तान की ‘लेबर किसान पार्टी’ के प्रमुख सिंगारावेलु द्वारा की गई थी।
मज़दूर दिवस या मई दिवस को भारत में 'कामगार दिन’, कामगार दिवस और अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस के रूप में भी जाना जाता है।