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पण्डित गौरीशंकर हीराचंद ओझा पण्डित गौरीशंकर हीराचंद ओझा का जन | Utkarsh Ramsnehi Gurukul

पण्डित गौरीशंकर हीराचंद ओझा
पण्डित गौरीशंकर हीराचंद ओझा का जन्म 15 सितम्बर, 1863 को मेवाड़ और सिरोही राज्य की सीमा पर स्थित 'रोहिड़ा' नामक छोटे से गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई तथा कालांतर में 1877 ई. में मात्र 14 वर्ष की आयु में उच्च शिक्षा के लिए वे मुम्बई गए, जहाँ 1885 में 'एलफिंस्टन हाईस्कूल' से मेट्रिक्यूलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की।
1888 ई. में ओझा जी उदयपुर पहुँचे थे। कविराज श्यामलदास इनसे इतना प्रभावित हुए थे कि उन्होंने इन्हें अपने इतिहास कार्यालय में सहायक मंत्री बना दिया था, जिससे इन्हें मेवाड़ के भिन्न-भिन्न ऐतिहासिक स्थानों को देखने और ऐतिहासिक सामग्री संकलित करने का अवसर मिला।
उन्हें उदयपुर के विक्टोरिया हॉल के पुस्तकालय एवं म्यूजियम का अध्यक्ष बनाया गया। वहाँ पुरातत्त्व विभाग के लिए इन्हें शिलालेखों, सिक्कों, मूर्तियों आदि ऐतिहासिक सामग्री संग्रह करने का अवसर मिला।
यहाँ रहते हुए ही ओझा जी ने ‘भारतीय प्राचीन लिपिमाला’ (1894 ई.) नामक ग्रंथ लिख कर पुरातत्त्व जगत में विशिष्ट ख्याति प्राप्त की।
लॉर्ड कर्जन के संपर्क में आने पर ओझा जी की विद्वता से प्रभावित होकर कर्जन ने इन्हें अजमेर में म्यूजियम का अध्यक्ष बना दिया तथा वहीं रहते हुए वर्ष 1911 में इन्होंने 'सिरोही राज्य का इतिहास' लिखा था।
हिस्ट्री ऑफ़ राजपूताना शृंखला का प्रारंभ वर्ष 1926 में हुआ तथा पंद्रह वर्षों की अवधि में उदयपुर (मेवाड़), जोधपुर, बीकानेर, डूँगरपुर, बाँसवाड़ा तथा प्रतापगढ़ के इतिहास प्रकाशित हुए।
शिलालेख, दानपत्र, सिक्के, हस्तलिखित ख्यातें, बातें, राव-भाटों की बहियें, राजस्थानी व संस्कृत के काव्य, गुजराती व मराठी भाषाओं के ग्रंथ, फारसी ग्रंथों का अनुवाद और विदेशी यात्रियों के विवरण ओझा जी के इतिहास लेखन के आधार स्रोत रहे हैं।
इन्होंने प्रत्येक घटना के वर्णन में प्राप्त सभी आधार स्रोतों का उपयोग करते हुए उनकी सत्यता को प्रमाणित करने का यथासंभव प्रयास किया और संदर्भ सामग्री का सुस्पष्ट उल्लेख पाद टिप्पणी में किया।
20 अप्रैल, 1947 को ओझाजी की 84 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई।