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भाग:- 2 4. दोनों देशों के मध्य यह विवाद , मुख्य रूप से काली न | E - Books , Quiz & CA™

भाग:- 2

4. दोनों देशों के मध्य यह विवाद , मुख्य रूप से काली नदी के उद्गम स्थल और पहाड़ों से होकर बहने वाली इसकी कई सहायक नदियों की अलग - अलग व्याख्या के कारण है ।

5. काली नदी के पूर्व में स्थित क्षेत्र पर नेपाल का दावा , नदी के लिंपियाधुरा उद्गम पर आधारित है , जबकि भारत का कहना है , कि नदी वास्तव में कालापानी के पास निकलती है और इसीलिए इसका नाम काली पड़ा है ।

✓भारत का लिपुलेख ( Lipulekh ) पर नियंत्रण :-

• 1962 के युद्ध में तिब्बती पठार से लगे हिमालयी दरों का महत्व भलीभांति स्पष्ट हो गया था ।

• उस युद्ध के दौरान , चीनी सेना ने तवांग में स्थित से ला ' ( Se La ) दरें का इस्तेमाल किया और पूर्व में ब्रह्मपुत्र के मैदानों तक पहुंच गई थी ।

• पूर्व में सैन्य हार ने स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर दिया कि , ' अपर्याप्त रूप से सुरक्षित दरें चीन के खिलाफ भारतीय सैन्य तैयारियों की एक बड़ी कमजोरी थे ।

• ' से ला ' दर्रा जिसकी कुछ हद तक किलेबंदी भी की गयी थी की तुलना में लिपुलेख ' दर्रा एकदम असुरक्षित था ।

• इसे देखते हुए , नेपाली राजा महेंद्र ने दिल्ली के साथ एक समझौता किया और इस क्षेत्र को सुरक्षा उद्देश्यों के लिए भारत को सौंप दिया ।

• 1969 में द्विपक्षीय वार्ता के तहत ' कालापानी को छोड़कर सभी चौकियों को हटा दिया गया था ।


✓ नेपाल और भारत ने कहां चूक की है ?

भारत और चीन के बीच 2015 के लिपुलेख समझौते जिसके तहत भारत के मानसरोवर तीर्थयात्रा संबंधों को नवीनीकृत किया गया था के दौरान भारत और चीन ने नेपाल की चिंताओं को स्पष्ट रूप से अनदेखा कर दिया था ।

• तीर्थयात्रा और तिब्बत में व्यापार को बढ़ावा देने वाले इस समझौते से पहले भारत या चीन , किसी भी पक्ष ने नेपाल से कोई परामर्श अथवा राय नहीं ली ।

वर्तमान स्थितिः

•कुछ समय पूर्व , नेपाल द्वारा संशोधित आधिकारिक नक्शा प्रकाशित किया गया था , जिसमे काली नदी के उद्गम स्रोत लिंपियाधुरा से लेकर त्रिकोणीय क्षेत्र के उत्तर - पूर्व में कालापानी और लिपुलेख दरें तक के क्षेत्र को अपने क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया है ।

• पिछले साल प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने मानचित्र को संवैधानिक दर्जा देने के लिए संविधान संशोधन प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया था ।

• भारतीय पर्यवेक्षकों का कहना है कि नेपाल सरकार का यह कदम कालापानी मुद्दे पर भविष्य में किसी भी समाधान को लगभग असंभव बना सकता है , क्योंकि इस प्रस्ताव को संवैधानिक गारंटी मिलने से इस विषय पर ' काठमांडू ' की स्थिति दृढ़ हो जाएगी ।