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!! कहानी जीवन की !! – कड़वा वचन •━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━• | 🪷 आज की प्रेरणा 🪷




!! कहानी जीवन की !!


– कड़वा वचन

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सुंदर नगर में एक सेठ रहते थे। उनमें हर गुण
था - नहीं था तो बस खुद को संयत में रख पाने
का गुण। जरा-सी बात पर वे बिगड़ जाते थे।
आसपास तक के लोग उनसे परेशान थे। खुद
उनके घर वाले तक उनसे परेशान होकर बोलना
छोड़ देते।

किंतु, यह सब कब तक चलता। वे पुन: उनसे
बोलने लगते। इस प्रकार काफी समय बीत गया,
लेकिन सेठ की आदत नहीं बदली। उनके स्वभाव
में तनिक भी फर्क नहीं आया।

अंततः एक दिन उसके घरवाले एक साधु के
पास गये और अपनी समस्या बताकर बोले:-

“महाराज ! हम उनसे अत्यधिक परेशान हो गये
हैं, कृपया कोई उपाय बताइये।” तब, साधु ने
कुछ सोचकर कहा:- “सेठ जी ! को मेरे पास
भेज देना।”

“ठीक है, महाराज” कहकर सेठ जी के घरवाले
वापस लौट गये। घर जाकर उन्होंने सेठ जी को
अलग-अलग उपायों के साथ उन्हें साधु महाराज
के पास ले जाना चाहा। किंतु, सेठ जी
साधु-महात्माओं पर विश्वास नहीं करते थे। अतः
वे साधु के पास नहीं आये। तब एक दिन साधु
महाराज स्वयं ही उनके घर पहुंच गये। वे अपने
साथ एक गिलास में कोई द्रव्य लेकर गये थे।

साधु को देखकर सेठ जी की प्योरिया चढ़ गयी।
परंतु घरवालों के कारण वे चुप रहे।

साधु महाराज सेठ जी से बोले:- “सेठ जी ! मैं
हिमालय पर्वत से आपके लिए यह पदार्थ लाया
हूं, जरा पीकर देखिये।” पहले तो सेठ जी ने
आनाकानी की, परंतु फिर घरवालों के आग्रह पर
भी मान गये। उन्होंने द्रव्य का गिलास लेकर मुंह
से लगाया और उसमें मौजूद द्रव्य को जीभ से
चाटा।

ऐसा करते ही उन्होंने सड़ा-सा मुंह बनाकर।
गिलास होठों से दूर कर लिया और साधु से
बोले:-
“यह तो अत्यधिक कड़वा है, क्या है
यह ?”

“अरे आपकी जबान जानती है कि कड़वा क्या
होता है” साधु महाराज ने कहा। “यह तो हर कोई
जानता है” कहते समय सेठ ने रहस्यमई दृष्टि से
साधु की ओर देखा।

“नहीं ऐसा नहीं है, अगर हर कोई जानता होता
तो इस कड़वे पदार्थ से कहीं अधिक कड़वे शब्द
अपने मुंह से नहीं निकालता। सेठ जी वह एक
पल को रुके फिर बोले। सेठ जी याद रखिये जो
आदमी कटु वचन बोलता है वह दूसरों को दुख
पहुंचाने से पहले, अपनी जबान को गंदा करता
है।”

सेठ समझ गये थे कि साधु ने जो कुछ कहा है
उन्हें ही लक्षित करके कहा है। वह फौरन साधु के
पैरों में गिर पड़े:- “बोले साधु महाराज ! आपने
मेरी आंखें खोल दी, अब मैं आगे से कभी कटु
वचनों का प्रयोग नहीं करूंगा।”

सेठ के मुंह से ऐसे वाक्य सुनकर उनके
घरवाले प्रसन्नता से भर उठे। तभी सेठ जी ने
साधु से पूछा:-
“किंतु, महाराज ! यह पदार्थ जो
आप हिमालय से लाये हो वास्तव में यह क्या
है?”

साधु मुस्कुराकर बोले:- “नीम के पत्तों का
अर्क।” “क्या” सेठ जी के मुंह से निकला और
फिर वे धीरे-से मुस्कुरा दिये।

शिक्षा:- मित्रों! कड़वा वचन बोलने से बढ़कर
इस संसार में और कड़वा कुछ नहीं। किसी द्रव्य
के कड़वे होने से जीभ का स्वाद कुछ ही देर के
लिए कड़वा होता है। परंतु कड़वे वचन से तो मन
और आत्मा को चोट लगती है।

!! शुभ शुक्रवार !!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
आपका दिन शुभ एवं मंगलमय हो!
सदैव प्रसन्न रहिये!

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