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!! जीवन मंत्र !! – आत्मसुधार का सरल पथ | 🪷 आज की प्रेरणा 🪷




!! जीवन मंत्र !!


– आत्मसुधार का सरल पथ, "सेवा"

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पाप का परिणाम पाप ही होता है। बुराई का फल बुरा और भलाई का भला, सभी ने इसे स्वीकार किया है। मनुष्य जैसा अभ्यास करेगा, वैसा ही वह बनेगा। इसलिए "शुभ" की प्राप्ति के लिए, "अच्छाइयों" की वृद्धि के लिए, आचार शास्त्र में "परमार्थ," "सेवा," "दान-पुण्य," "विभिन्न उपासना," "व्रत" आदि को धर्म मानकर उन्हें जीवन में प्रमुख स्थान दिया है। यदि मनुष्य अपने जीवन में सुधार चाहे, शुभ की आकांक्षा रखे, तो दूसरों के लिए वही सब करे, जो स्वयं अपने लिए चाहता है। दूसरों के लिए वही सोचे, जो अपने लिए सोचता है। दूसरों के दुःख दूर करने में, कठिनाइयों में मदद करने में, उनका सुधार करने में, उनके हित के लिए वही प्रयत्न किया जाए, जो मनुष्य अपने लिए करता है। इससे मनुष्य के दुःख, परेशानियाँ, उलझनें स्वतः दूर हो जाती हैं। मानसिक गुत्थियाँ सुलझ जाती हैं।

अपनी बुराइयों से सीधे लड़ने पर वे और भी प्रबल होती हैं, ऐसी हालत में उनसे लड़कर विजय पाना कठिन है। अपनी बुराइयों का सुधार करने के लिए उनसे सीधे न लड़कर दूसरों के हित, सेवा, कल्याण में अपनी शक्ति लगानी चाहिए। इससे जो लाभ दूसरों को मिलना चाहिए, वह स्वयं को भी सहज ही प्राप्त हो जाता है। "परमार्थ," "परहित" साधन की पुण्य-प्रक्रिया में मनुष्य के स्वयं के दोष, बुराइयाँ भी दूर हो जाते हैं और दुहरा लाभ प्राप्त होता है।

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