!! जीवन मंत्र !! – स्वच्छ मन से सभ्य समाज ━━━━━━━━━━━━━━━ | 🪷 आज की प्रेरणा 🪷
!! जीवन मंत्र !!
– स्वच्छ मन से सभ्य समाज
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कार्यो का मूल "विचार" है । मस्तिष्क में जिस प्रकार के "विचार" घूमते हैं, उसी प्रकार के कार्य होने लगते हैं । जिस वर्ग के लोग स्वार्थपरता, तृष्णा, वासना और अहंता के विचारों में डूबे रहते हैं, वहाँ नाना प्रकार के क्लेश, कलह, दुष्कर्म एवं अपराध निरंतर बढ़ते रहते हैं । "जहाँ "परमार्थ," "संयम," "संतोष," "नम्रता" और "आदर्शवाद" को प्रधानता दी जाती है, वहाँ सर्वत्र सत्कर्म ही सत्कर्म होते दिखाई पड़ते हैं और फलस्वरूप सतयुगी सुखशांति का वातावरण बन जाता है ।
जिस प्रकार "स्वस्थ शरीर" से "स्वच्छ मन" का संबंध है, उसी प्रकार "स्वच्छ मन" के ऊपर "सभ्यसमाज" की संभावना निर्भर है । यदि शरीर बीमार पड़ा रहेगा, तो मन में निम्न श्रेणी के विचार ही आएँगे । अस्वस्थ व्यक्ति देर तक उच्च भावनाएँ अपने मन में धारण किए नहीं रह सकता । उसी प्रकार अस्वच्छ मन वाले व्यक्तियों से भरा समाज कभी सभ्य कहलाने का अधिकारी नहीं बन सकता । मानव जाति "एकता," "प्रेम," "प्रगति," "शांति" एवं "समृद्धि" की ओर अग्रसर हो, इसका एकमात्र उपाय यह है कि लोगों के मन में "आदर्शवाद," "धर्म," "कर्तव्यपरायणता," "परोपकार" एवं "आस्तिकता" की भावनाओं से ओत-प्रोत रहें ।
इस दिशा में यदि हमारे कदम उठते रहेंगे, तो उन्नति के लिए जिन योग्यताओं एवं क्षमताओं की आवश्यकता है, वे सब कुछ ही समय में अनायास प्राप्त हो जाएँगी । यदि दुर्गुणी लोग बहुत चतुर और साधन सम्पन्न बनें, तो भी उस चतुरता और क्षमता के दुरुपयोग होने पर विपत्ति ही बढ़ेगी ।
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