2021-05-22 16:33:14
"उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति,कार्याणि न मनोरथै
न हि सुप्तस्य सिंहस्य,प्रविशन्ति मृगाः।।
गुणेषु कियतां यत्नः,किमाटोपै: प्रयोजनं।
विक्रीयन्ते न घंटाभिः,गावः क्षीरविवर्जिता।।"
देववाणी संस्कृत का यह श्लोक स्वतः ही शब्द यत्न का पाठक के साथ तादात्म्य बनाते हुए तथा उसकी मौलिकता को समेटते हुए आस्वादन कराता है। साप्ताहिक पत्रिका "यत्न" ना केवल हमारा किया हुआ प्रयत्न है अपितु यह युवा का, युवा के लिए, युवा की ओर से, ज्ञानार्जन करने व कराने वाला बहुमुल्य उपहार है।
क्या है पत्रिका यत्न ?
शिक्षित होना और साथ ही साथ युवा होना कुछ ऐसा संयोग है जो इस संसार में अद्वितीय गुणों का एक अद्वितीय प्रमाण है। शिक्षा मात्र मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति का मूल नहीं, अपितु यह एक माध्यम है जिसके द्वारा हम स्वयं में छिपी हुई संभावनाओं को साकार करते हैं। द यूथ इंक ऐसे ही शिक्षित युवाओं के निर्माण के लिए कार्यरत है, जो कि युवाओं के आदर्शों की प्रतिमूर्ति हों, जो कि शैक्षिक कर्तव्यों का पालन करें, जो अपने मूल रूप को पहचाने और स्वयं की भूमिका स्वयं तय करें, जो अपने विचारों के लिए दूसरे के विचार और मतों पर आश्रित ना हो। द यूथ इंक की सप्ताहिक पत्रिका यत्न इसी ध्येय को अपने अंदर समेटे हुए हैं। यत्न हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए वह सब उपलब्ध कराने के लिए तत्पर है जो अमूमन हिंदी भाषा में दुर्लभ ही रहता है। यदि आपके भीतर भी यथार्थ को जानने की तथा वास्तविकता को पहचानने की ललक है तो ये विचार आपके लिए ही है।
हमारा दर्शन :
नए आयाम, नए विचार तथा नए सुधार तीनों ही पुरातन प्राचलों की नूतन सुनहरी पंक्तियां हैं, जो पुराने मापदंडों को सुधार कर, हमारे समक्ष अनुशासित, समयबद्ध, सकारात्मक और लक्ष्योन्मुखी नैरन्तर्य लाती है। हम सम्वेदनशील और विचारशील प्राणी हैं और जब संपूर्ण समाज दो ( या अधिक) झूठे पहलुओं में बंटा हो, हम प्रतिदिन अपने सामाजिक पर्यावरण में घटित हो रही घटनाओं के बारे में सुनते हैं, पढ़ते हैं अथवा समझते हैं तो यह आकलन कर पाना सर्वस्व कठिन हो जाता है कि जो हमारे आसपास घटित हो रहा है, वह यथार्थ है अथवा नहीं। वह भोगा हुआ यथार्थ है अथवा सोचा हुआ यथार्थ। मुख्यतः यह तो माध्यम पर निर्भर करता है की प्राप्त हुआ समाचार यथार्थ है या व्यर्थ। हमारे आस - पास घटित हो रही कोई भी घटना, वह परोक्ष अथवा प्रत्यक्ष हो, हमें प्रभावित करती है। लेकिन जिस माध्यम के द्वारा सूचना हम तक पहुंच रही है वह माध्यम कितनी यथार्थपरक सूचना हम तक पहुंचा रहा है, यह महत्वपूर्ण है। यदि कोई विद्यार्थी, युवा, जो विद्यालय से हो अथवा महाविद्यालय से, यदि उसे अपने सामाजिक पर्यावरण में घटित हो रही घटनाओं को यथार्थता के साथ जानना है तो वह मूलतः बिना किसी व्यवसायिक उपक्रम में पड़े, ऐसे माध्यम को अपना सहारा बनाएं, जो उसी की आयु, वर्ग और उसी के समान चिंतन रखता हो।
क्यूं आवश्यक है *"यत्न" ?
यदि आज हम किसी भी विषय पर कुछ कहना चाहते हैं, लिखना चाहते हैं, उस विषय पर कार्य करना चाहते हैं, तो हमें उस विषय पर एक निस्वार्थ शोध प्राप्त क्यों ना हो। हम दूसरों के विचारों से प्रेरित होकर, स्वयं के विचारों को आकार क्यों दें? इससे बेहतर है कि यदि हमें किसी विशेष विषय पर अपने विचार बनाने हैं तो हम उसके आधार को समझे, उसकी संकल्पना और मूल उद्देश्य को जाने, संबंधित तथ्यों का अध्ययन करें और फिर उस विषय पर अपने विचार बनाएं जो कि सार्थक हों।
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