Get Mystery Box with random crypto!

ब्रिटिश कालीन भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़ी कुछ प्रथाएं – - | 🎯Target with Raghav- UPSC,SPSC,SSC,BANK,TET,CTET,SuperTet

ब्रिटिश कालीन भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़ी कुछ प्रथाएं –

- दादनी प्रथा – दादनी प्रथम के अंतर्गत अंग्रेज व्यापारी भातीय श्रमिकों शिल्पियों को रुपये अग्रिम संविदा के रूप में देते थे।

- कमियौटी प्रथा – बिहार एवं उड़ीसा में प्रचलित इस प्रथा में कमियां जाति के कृषि दास मालिक से प्राप्त ऋण पर दी जाने वाला ब्याज की राशि के बदले जीवन भर कार्य करते थे।

- तीन कठिया प्रथा – चंपारन (बिहार) क्षेत्र में प्रचलित इस प्रथा में कृषकों को अंग्रेज बागान मालिकों के अनुबंध के अनुसार भूमि के 3/20 भाग पर नील की खेती करना आवश्यक था।

- दुबला हाली प्रथा – भारत के पश्चिमी क्षेत्र मुख्यतः सूरत (गुजरात) क्षेत्र में प्रचलित इस प्रथा के अंतर्गत दुबला हाली भूदास अपनी संपत्ति का और स्वयं का संरक्षक अपने मालिकों को ही मानते थे।

- गिरमिटिया प्रथा – 19वीं शताब्दी के तीसरे दशक में शुरु की गई इस प्रथा में भारतीय श्रमिकों को एक समझौते के अंतर्गत 5 या 7 वर्ष के लिये विदेशों में मजदूरी करनी होती थी। इस समझौते को गिरमिट तथा इस प्रथा को गिरमिटिया प्रथा कहा जाता था।

भू-राजस्व व्यवस्थायें –

- रैयतवारी व्यवस्था – थामस मुनरो और कैप्टन रीड के द्वारा शुरु की गई इस व्यवस्था को प्रायोगिक तौर पर सर्वप्रथम तमिलनाडु के बारामहल (1792) में लागू किया गया। तमिलनाडु, मद्रास, बंबई प्रेसीडेंसी के कुछ हिस्सों, असम तथा कुर्ग के कुछ हिस्सों सहित यह व्यवस्था ब्रिटिश भारत के लगभग 51% भू-भाग पर लागू की गयी। इसके अंतर्गत किसानों को भू-स्वामी मानकर लगान का निर्धारण किया गया। इसमें 20-30 वर्षों पर लगान का पुनर्निर्धारण किया जाता था।

- महालवाड़ी बंदोबस्त – इस व्यवस्था के तहत गांव की बिरादरी अपने प्रतिनिधियों (मुखिया आदि) के माध्यम से रकम चुकाने का भार अपने ऊपर लेती थी। यह व्यवस्था उत्तर प्रदेश, मध्यप्रांत, पंजाब में अर्थात भारत के कुल 30% भूमि पर लागू थी।

- माटिन बर्ड को उत्तरी भारत में भूमि का व्यवस्था का प्रवर्तक के नाम से स्मरण किया जाता है।

- नील दर्पण – यह दीनबंधु मित्र द्वारा 1860 में लिखित नाटक था, जिसमें नील की खेती करने वाले कृषकों की दयनीय दशा का वर्णन था। नील के रंग बनाने का उद्योग भारत में 18वीं सदी के अंत में शुरु किया गया था।

- स्थायी बंदोबस्त – यह व्यवस्था लॉर्ड कार्नवालिस ने सर जॉन शोर के सुझावों पर 1793 में लागू की थी। इसके तहत लगान की एक निश्चित मात्रा, जो जमींदारों द्वारा देय थी, हमेशा के लिए निर्धारित कर दी गई। जमींदार अपनी सेवाओं के लिए एक हिस्सा (1/11) अपने पास रखता था। यह व्यवस्था बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा बनारस के क्षेत्रों एवं कर्नाटक (19%) पर लागू थी।