अधर्म की पाँच शाखाएँ हैं― विधर्म, परधर्म, आभास, उपमा और छल। ज | सुधर्मा Sudharma
अधर्म की पाँच शाखाएँ हैं― विधर्म, परधर्म, आभास, उपमा और छल।
जिस कार्य को धर्म बुद्धि से करने पर भी अपने धर्म में बाधा पड़े, वह विधर्म है।
किसी अन्य के लिये उपदेश किया हुआ धर्म परधर्म है।
पाखण्ड या दम्भ का नाम उपधर्म अथवा उपमा है।
शास्त्र के वचनों का दूसरे प्रकार का अर्थ कर देना छल है।
मनुष्य अपने आश्रम के विपरीत स्वेच्छा से जिसे धर्म मान लेता है, वह धर्माभास है।
- सनन्दन वैश्य