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मोहब्बत जहां में बदनाम है साहब, शरीफों का इसमें क्या काम है सा | मोहब्बत शायरी

मोहब्बत जहां में बदनाम है साहब,
शरीफों का इसमें क्या काम है साहब,

प्यार करते हैं लोग यूं छुपा छुपाकर
बेवफाई तो जैसे खुलेआम है साहब,

जमाने में तुम्हें मिलेगी इज्जत तभी
गर पास में नौकरी और दाम है साहब,

तुम इतने गम में भी हंस रहे हो कैसे
तुम्हारी हिम्मत को सलाम है साहब...

जो दर्द ए जुदाई मिटा दे पल भर में
क्या तुम्हारे पास ऐसा बाम है साहब?

कोई दर्द समझने वाला मिले
गम तो जिन्दगी में तमाम है साहब,

कोशिशें नाकाम रहीं उसे भुलाने की
दिल तो उसका जैसे गुलाम है साहब,

क्यों रो रहे हो किसी के दूर जाने से ?
लोगों का बिछड़ना तो आम है साहब,

मेरे दिल का बोझ भी उतर जाता
सुनो कुछ वक्त का कलाम है साहब।