एक दिवस साधना प्रणाम गुरु जी आज के लिए प्रशन यह है कि | Sahaj Kriyayog Sadhna Adhyatmik Trust
एक दिवस साधना
प्रणाम गुरु जी आज के लिए प्रशन यह है कि क्या एक दिन मे होने वाली साधनाये भी बाकी साधनाओ की तरह पूर्ण रूप से कार्य करती है या उनकी ऊर्जा का स्तर कम रहता है
उत्तर - साधनाएं अनेक परिस्थितयों पर निर्भर करती हैं साथ ही साथ साधना नाना प्रकार की होती है और साधना उनकी की संभव है जो प्रकृति में पूर्व उपलब्ध हैं यह आंशिक जानकारी है जो आपको समझनी आवश्यक है क्यूंकि यह सार है.
यह कहना उचित नही होगा की एक दिवस में पूर्ण होने वाली साधना की उर्जा का स्तर कम है अथवा उसके कार्य प्रणाली अथवा क्षमता में कोई कमी होगी क्यूंकि १ दिवस साधना हेतु अनेक प्रकार के मुहूर्त के समूह का चयन किया जाता है जिसमे चन्द्र की स्थितयां आदि देखि जाती हैं ग्रहण , अमावस्या आदि को देखा जाता है इस समय पर अत्रिप्त्ता अपने चरम पर होती है इसलिए कम समय पर सिद्धि मिलना आसन हो हो जाता है और जब मनुष्य किसी १ दिवस की साधना को करता है उससे पूर्व उसे उचित अभ्यास होना भी आवश्यक है अन्य साधना का जिससे वह समय रहते साधना के सभी नियम को पूर्ण कर सके.
अनेक दिवस की साधना में सामान्य नियम एवं सामग्री का प्रयोग किया जाता है १ दिवस की साधना में
नाना प्रकार की सामग्री, स्थान विशेषता मुहूर्त दिशा आसन माला आदि का चयन किया जाता है
जिसके माध्यम से शक्ति का आवाहन प्रक्रिया को पूर्ण किया जाता है और इसके लिए विशेष तरंग की स्थापना होती है इस शरीर एवं सामग्री में जिसे अत्यधिक प्रकृति के उन शक्तिओं के करीब लाया जाता है जिसे मनुष्य समान परिस्थियों में प्रयोग नहीं करता है. जैसे हड्डी शमशान भस्म कब्र की मिट्टी आदि आदि इन सभी के नियमित प्रयोग के माध्यम से साधक उस प्रक्रिया को १ दिवस में पूर्ण कर लेता है जिसे करने में अनेक दिवस लगते हैं.
यदि आप मूलतः देखें तो आप २१ दिन के साधना में प्रत्येक रात्रि यदि ३० मिनट दे रहे हैं तो अपने कुल १०.५ घंटे साधना की जब आप एक दिवस की साधना करते हैं उस समय आप वैसे ही ४ से ५ घंटे लगातार साधना करते हैं जिस कारण से आप एक साथ इतनी शक्तिशाली तरंग उत्पन्न करते हैं जिससे शक्ति उस तरंग के प्रहार से प्रभावित होके अति कम समय में आपके समक्ष प्रस्तुत हो जाती है अतः यह समझना की कम समय में सिद्ध की हुई शक्ति का प्रभावहीन होगी यह गलत है
१ दिक्क़त जो साधक को कम समय की साधना में आती है वह है तरंग को स्थापित करके रखना अर्थात जो तरंग आप २१ दिन में बनांते हैं उसे लगतार अभ्यास से आप शरीर में स्थापित रख पाते हैं लेकिन १ दिवस में शरीर के अत्यधिक प्रभाव से जो तरंग उत्पन्न होती है वह कई बार लम्बे समय तक स्थापित नहीं रह पाती है अथवा वह उस स्थिति में बनी नही रह पाती है जिस कारण से शक्ति की कार्य क्षमता कम होने लगती है और धीरे धीरे विलुप्त हो जाती है इसीलिए अभ्यास आवश्यक है.
कम समय में अधिक का लोभ हमेशा ऋणी करता है वह शक्ति के प्रति हो या व्यक्ति के प्रति.
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