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पृणाम गुरदेव। गुरुजी क्या उपासना के दौरान संभोग कर सकते हैं। | Sahaj Kriyayog Sadhna Adhyatmik Trust



पृणाम गुरदेव। गुरुजी क्या उपासना के दौरान संभोग कर सकते हैं।

उत्तर -
प्रश्न करने से पूर्व प्रश्न के मूल को स्वयं से समझना चाहिए - पूजा, अर्चना, साधना, आराधना, उपासना इससे कहीं अनेक शब्द दिए गये हैं व्याकरण में यह समझें पर्यायवाची शब्द एक दुसरे के विषय में बताते हैं लेकिन अर्थ उनकी भौतिक आत्मिक अथवा क्रिया के अनुसार होते हैं इसीप्रकार उपासना को भी समझाना आवश्यक है और यह व्याख्या सामन्य जन हेतु है क्रियायोग अभ्यासी हेतु नही है.

उपासना को उप + आसन + अ में दर्शया जाता है. उप का अर्थ है निकट , आसन का अर्थ है नियंत्रण - अर्थात उपासना साधना का प्रथम भाग है जब साधक नियंत्रण के निकट है तब वह उपासक है और जब उसे नियंत्रण प्राप्त हो जायेगा तब वह साधक है.

नियंत्रण के निकट होने नियंत्रण खो देने का क्या मूल्य ? जो पौधे चन्दन के निकट होते हैं उनमे चन्दन की गंध समा जाती है इसी प्रकार से साधक जब नियंत्रण के निकट होता है जब उसमे इश्वर की छवि समा जाती है.

सम्भोग एक सीमा तक मनुष्यता की निशानी है लेकिन उसके बाद पाशविक प्रवित्ति. वीर्य का नवीनी करण आवश्यक है लेकिन इसका अर्थ यह नही मनुष्य के मस्तिषक में ही यह कल्पना चलती रहे की कब सांझ हो सूरज ढले और मैं बिस्तर पर जाऊं. यह एक उपासक की अनियंत्रित होने का संकेत है.

इश्वर की भक्ति और पूजा एक ही है ज्ञान को पाना कैसे पान स्वयं को उर्धगामी स्थिति में लाके वह पूजा है. यदि लिंग के अधीन हैं तो वह करें जिसमे आप सकुशल है मेरा आपसे प्रश्न है क्या आप सम्भोग कर सकते हैं ? यदि हाँ तो आप एक बार में ही संतुष्ट हो जायेंगे अनेक सप्ताह के लिए यदि आपको नित प्रतिदिन उत्तेजना हो रही है अर्थात आपने सम्भोग किया ही नही अपने सब कुछ मिनट तक आगे पीछे खुद को धकेलने को सम्भोग समझ लिया है. सम्भोग की सीमा इतनी ही नही है समस्त नाडी में जब सम्भोग की उर्जा व्याप्त हो जाये की अंग के प्रत्येक भाग उसे महसूस करे वह सम्भोग है.