बड़ी ही विचित्र विडम्बना है कि हम अपनी पारंपरिक अनमोल सभ्यता स | THE NEWS MAN
बड़ी ही विचित्र विडम्बना है कि हम अपनी पारंपरिक अनमोल सभ्यता संस्कृति संस्कारों आर्युवेद गौमाता गुरूकुल दाईप्रथा वैद्यराज सेहत सबको आधुनिकता व मैकाले शिक्षा के बलि चढ़ा चुके हैं , अगर कोई कुछ जागरूक करना चाहते भी हैं तो भी अक्सर पढ़े लिखे आपटूडेट सवासमझदारों को किंतु परंतु व सिर से ऊपर निकल जाती है , सर्दियों के शुरू होते ही संतरे व आंवले आते हैं, हमने अपने बच्चों को संतरे खिलाए तो जुकाम होना लाजिमी है, जुकाम हुआ नहीं कि हम दौड़े डॉ के पास , डॉ पूछेगा कि कहीं संतरे तो नहीं खिलाए तो हम हैं कि हामी भर देते हैं और डॉ कहते हैं कि संतरे बंद , अब मैं सबसे पूछती हूं कि डॉ समझदार है और हमारा ईश्वर निरा अनपढ़ गंवार जो इस मौसम में संतरे पैदा कर दिए संतरे दरअसल ज़ुकाम (उलटीदस्त) लगाकर हमारी प्राकृतिक रूप से डायलासिस कर रहे हैं, हमने प्रकृति के कार्य में बाधा उत्पन्न कर, अप्राकृतिक डाइलाइसिस पर आने के लिए तैयार हो रहे हैं, अरे भाई ईश्वर जिस मौसम में जो कुछ भी दे रहे हैं वही हमारे शरीर के डिजाइन में फिट किया है उस निरे अनपढ़ गंवार ईश्वर ने , प्रकृति के बिना अस्तित्व ही असंभव है, लयताल मिलाकर तो देखें कृपया, सारे जीव जंतु प्रकृति से लय-ताल मिला कर कभी भी किसी भी डॉ के मोहताज नहीं हैं, जबकि ईश्वर ने तो सबसे ज्यादा अनमोल मानव जीवन ही बनाया है, वो भी सोचता होगा कि मानव को ये क्या हो गया है , मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि श्री राजीव दीक्षित जी को जरूर सुने कृपया सोचना समझना संभलना लौटना जागना जगाना होगा ही होगा नीलम रसोपचार केन्द्र ग्वालियर मध्यप्रदेश