2022-12-24 07:36:13
An aspirant is contemplating suicide कल रात एक दोस्त का मैसेज आया कि किसी aspirant ने उसे बहुत हताशा भरे मैसेज किए हैं। यहां तक कि उसने suicide तक की बात कह दी। कुछ दिन पहले एक aspirant ने ऐसी ही हताशा से अपनी जान भी दे दी। ऐसी खबरों से आपका मन भी विचलित होता है। होना भी चाहिए , आखिर हम सब ने जीवन में ऐसा समय देखा है जब सब व्यर्थ और निरर्थक लगता है।
आज से कुछ साल पहले तक , जब थोड़ा बचपना था , मैं suicide करने वालों को कायर मानता था। मुझे लगता था कि यह तो सबसे आसान काम है। मर जाओ , सब खत्म। Suicide ऐसी चीज़ है जिसका परिणाम आपको नहीं भुगतना पड़ता। तो आसान ही हुआ न? पर जब खुद ऐसी व्यथा से गुज़रा तब समझ आने लगा की suicide कायरता नहीं है। यह सबसे मुश्किल फैसला होता होगा। नहीं , मैंने खुद कभी suicide contemplate नहीं किया।
खैर कायरता न सही , suicide मूर्खता तो है। या यूं कहूं कि सूक्ष्मदर्शिता (short sightedness) है। आखिर हम सब कुछ खत्म करने का कब सोचते हैं? शायद बार बार फेल करने पर। या किसी अपने के छोड़ कर चले जाने पर। या कुछ भी जीवन में सही न हो रहा हो तब। पर क्या ये short sightedness नहीं? आज जब हमारी औसतन आयु 80 साल के करीब है , तब कुछ 4-5 सालों के खराब होने पर आगे के 50-60 साल कुर्बान कर देना सही है क्या? एक PDF में अपना नाम न खोज पाने पर , क्या क्या कुर्बान करना सही लगता है तुम्हें?
पापा के बुढ़ापे में उनका सहारा बन कर उनका बचपन देख सकना कुर्बान करना सही है? दिवाली पे हर साल वो मां का तुम्हारे आने का इंतज़ार कुर्बान करना सही है? कितनी ही छोटी तनख्वाह हो , पर उस तनख्वाह से मां को साड़ी दिलाने का सुख कुर्बान करना सही है? अपनी खुद की औलाद को उंगली पकड़ कर चलना सिखाने का सुख कुर्बान करना सही है? सुनो , मैंने उस PDF में अपना नाम देख लिया है। मेरी बात मानो। PDF में नाम आने का सुख इन सारे सुखों के आगे बेहद सूक्ष्म है। आज तुम्हें न समझ आए बेशक। पर रुके रहना , एक दिन आएगा। पर वादा करो , रुके रहोगे न?
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