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प्रशासक समिति (Reg. E&SWS) रामायण एवं वेद पाठन | प्रशासक समिति हिन्दी चैनल

प्रशासक समिति (Reg. E&SWS)

रामायण एवं वेद पाठन

श्रीमद् वाल्मीकि रामायणम्

अयोध्याकाण्डम्:

।। प्रथमः सर्गः ०१ ।।

श्रीरामके सद्गुणोंका वर्णन, राजा दशरथका श्रीरामको युवराज बनानेका विचार तथा विभिन्न नरेशों और नगर एवं जनपदके लोगोंको मन्त्रणाके लिये अपने दरबारमें बुलाना

गच्छता मातुलकुलं भरतेन तदानघः ।
शत्रुघ्नो नित्यशत्रुनो नीतः प्रीतिपुरस्कृतः ॥ १ ॥

भावार्थ : पहले यह बताया जा चुका है कि) भरत अपने मामाके यहाँ जाते समय काम आदि शत्रुओंको सदाके लिये नष्ट कर देनेवाले निष्पाप शत्रुघन को भी प्रेमवश अपने साथ लेते गये थे । १ ॥

स तत्र न्यवसद् भ्रात्रा सह सत्कारसत्कृतः ।
मातुलेनाश्वपतिना पुत्रस्नेहेन लालितः ।। २ ।।

भावार्थ : यहाँ भाईसहित उनका बड़ा आदर-सत्कार हुआ और वे वहाँ सुखपूर्वक रहने लगे। उनके मामा युधाजित्, जो अयूथके अधिपति थे, उन दोनोंपर पुत्रसे भी अधिक स्नेह रखते और बड़ा लाड़ प्यार करते थे ॥ २ ॥

तत्रापि निवसन्तौ तौ तर्प्यमाणौ च कामतः ।
भ्रातरौ स्मरतां वीरो वृद्धं दशरथं नृपम् ॥ ३ ॥

भावार्थ : यद्यपि मामाके यहाँ उन दोनों वीर भाइयोंकी सभी इच्छाएँ पूर्ण करके उन्हें पूर्णतः तृप्त किया जाता था, तथापि वहाँ रहते हुए भी उन्हें अपने वृद्ध पिता महाराज दशरथकी याद कभी नहीं भूलती थी ॥ ३ ॥

राजापि तौ महातेजाः सस्मार प्रोषितौ सुतौ ।
उभी भरतशमी महेन्द्रवरुणोपमौ ॥ ४ ॥

भावार्थ : महातेजस्वी राजा दशरथ भी परदेशमे गये हुए महेन्द्र और वरुण के समान पराक्रमी अपने उन दोनों पुत्र भरत और सदा स्मरण किया करते थे ॥ ४ ॥

सर्व एव तु तस्येष्ठाश्चत्वारः पुरुषर्षभाः ।
स्वशरीराद विनिर्वृत्ताश्चत्वार इव बाहवः ॥ ५ ॥

भावार्थ : अपने शरीर प्रकट हुई चारों भुजाओंके समान वे सब चारों पुरुषशिरोमणि पुत्र महाराजको बहुत ही प्रिय थे ॥ ५ ॥

क्रमशः.....


अहिंसा परमोधर्मः धर्म हिंसातथैव च:

अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है..!!

जब जब धर्म (सत्य) पर संकट आये तब तब तुम शस्त्र उठाना
         
       जय श्री राम

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