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भारत की मिट्टियाँ

भारत देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की पाई जाने वाली मिट्टियों की किस्मों को पाँच भागों में बाँटा गया है –

1 जलोढ़ मिट्टी

2 काली मिट्टी

3 लाल मिट्टी

4 लैटेराइट मिट्टी (बलुई )

5 रेतीली (रेगिस्तानी मिट्टी)

जलोढ़ मिट्टी

जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil) को दोमट और कछार मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है. नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी कहते हैं. यह मिट्टी हमारे देश के समस्त उत्तरी मैदान में पाई जाती है. प्रकृति से यह एक उपजाऊ मिट्टी होती है. उत्तरी भारत में जो जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है, वह तीन मुख्य नदियों द्वारा लाई जाती है – सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र.

यह भारत के सर्वाधिक क्षेत्रफल 43% पर विस्तृत है।

जलोढ़ मिट्टी दो प्रकार के होते हैं।

1- खादर

2- बांगर

नदी के आसपास बाढ़ क्षेत्र की जलोढ़ मिट्टी खादर मिट्टी कहलाती है। खादर मिट्टी हर साल नई हो जाती है बाढ़ के माध्यम से

नदी से दूर ऊंचे क्षेत्रों के पुराने जलोढ़ को बांगर मिट्टी कहते हैं।

बांगर मिट्टी हर साल नहीं नहीं होती है अतः खादर मिट्टी अपेक्षाकृत अधिक उपजाऊ होता है।

जलोढ़ मिट्टी में भी ह्यूमस, नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी पाई जाती है।जलोढ़ मिट्टी में पोटेशियम और चूना प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

काली मिट्टी

काली मिट्टी (Black Soil) में एक विशेषता यह है कि यह नमी को अधिक समय तक बनाये रखती है. इस मिट्टी को कपास की मिट्टी या रेगड़ मिट्टी भी कहते हैं. काली मिट्टी कपास की उपज के लिए महत्त्वपूर्ण है. यह मिट्टी लावा प्रदेश में पाई जाती है. इस प्रकार इस मिट्टी के क्षेत्र में गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश का पश्चिमी भाग और मैसूर का उत्तरी भाग आते हैं.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काली मिट्टी को चेरनोजम कहा गया है। चेरनोजम मिट्टी मुख्य रूप से काला सागर के उत्तर में यूक्रेन में तथा ग्रेट लेक्स के पश्चिम में संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में पाई जाती है।

काली मिट्टी को लावा मिट्टी भी कहते हैं क्योंकि यह दक्कन ट्रैप के लावा चट्टानों की अपक्षय अर्थात टूटने फूटने से निर्मित हुई मिट्टी है।

काली मिट्टी की प्रमुख विशेषता यह है कि उसमें जल धारण करने की सर्वाधिक क्षमता होती है काली मिट्टी बहुत जल्दी चिपचिपी हो जाती है तथा सूखने पर इस में दरारें पड़ जाती हैं इसी गुण के कारण काली मिट्टी को स्वत जुताई वाली मिट्टी कहा जाता है।

लाल मिट्टी

यह चट्टानों की कटी हुई मिट्टी है. यह मिट्टी अधिकतर दक्षिणी भारत में मिलती है. लाल मिट्टी (Red Soil) के क्षेत्र महाराष्ट्र के दक्षिण-पूर्वी भाग में, मद्रास में, आंध्र में, मैसूर में और मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग में, उड़ीसा, झारखण्ड के छोटा नागपुर प्रदेश में और पश्चिमी बंगाल तक फैले हुए हैं.

भारत में दूसरा सर्वाधिक क्षेत्र 18% में पाया जाने वाला मिट्टी लाल मिट्टी है।

लाल मिट्टी लोहे के ऑक्साइड के कारण लाल दिखाई देता है।

लाल मिट्टी पठारी भारत के कम वर्षा वाले क्षेत्रों की मिट्टी हैं। यह उपजाऊ मिट्टी नही है, यही कारण है कि खाद्यान्नों की खेती यहाँ कम होती हैं।

लैटेराइट मिट्टी

लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil) के क्षेत्र दक्षिणी प्रायद्वीप के दक्षिण-पूर्व की ओर पतली पट्टी के रूप में मिलते हैं. इन मिट्टियों को पश्चिम बंगाल से असम तक देखा जा सकता है.

लैटेराइट मिट्टी का निर्माण दो परिस्थितियों में होता है।

1- 200 सेंटीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा

2- अधिक गर्मी

लैटेराइट मिट्टी की उपजाऊ मिट्टी है इसलिए या खानदान की लैटेराइट मिट्टी की उपजाऊ मिट्टी है इसलिए या खाद्यान्न की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।

ईट बनाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मिट्टी लैटेराइट मिट्टी है।

लैटेराइट मिट्टी में ह्यूमस, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (k) की कमी पाई जाती है और लोहे और एल्यूमीनियम के ऑक्साइड की प्रचुरता होती है और लोहे के ऑक्साइड के कारण ही लैटेराइट मिट्टी का रंग लाल होता है।

यहां पर चाय, कॉफी, मसाला, काजू, चीनकोना की खेती होती है।

यह मिट्टी अम्लीय होती है।

रेगिस्तानी मिट्टी

यह मिट्टी राजस्थान के थार प्रदेश में, पंजाब के दक्षिणी भाग में राजस्थान के कुछ अन्य भागों तथा गुजरात के कच्छ क्षेत्र में मिलती है।अकेला थार मरुस्थल ही लगभग 1,03,600 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र तक फैला हुआ है.

इसका मिट्टी में खाद्यान्नों की खेती संभव नहीं है इसलिए यहां पर ज्वार, बाजरा, सरसों एवं मोटे अनाज की खेती की जाती है।