Get Mystery Box with random crypto!

Motivational stories and kahaniya

टेलीग्राम चैनल का लोगो motivationlstories — Motivational stories and kahaniya M
टेलीग्राम चैनल का लोगो motivationlstories — Motivational stories and kahaniya
चैनल का पता: @motivationlstories
श्रेणियाँ: शिक्षा
भाषा: हिंदी
ग्राहकों: 849
चैनल से विवरण

प्रेरणा दायक, रोचक और ज्ञानवर्धक, मनोरंजक कथायें, कहानियाँ, किस्से, प्रसंग, कविताएं इत्यादि को समर्पित एक ऐसा चैनल जो आप को हर तरह की प्रेरक कहानियाँ प्राप्त कराएगा और प्रेरणादायी जानकारी का एक अनूठा एव समग्र स्रोत है l

Ratings & Reviews

2.67

3 reviews

Reviews can be left only by registered users. All reviews are moderated by admins.

5 stars

0

4 stars

1

3 stars

1

2 stars

0

1 stars

1


नवीनतम संदेश

2022-05-07 03:35:07
#motvational_story

सकारात्मक व्यवहार

एक आदमी एक सेठ की दुकान पर नौकरी करता था। वह बेहद ईमानदारी और लगन से अपना काम करता था। उसके काम से सेठ बहुत प्रसन्न था और सेठ द्वारा मिलने वाली तनख्वाह से उस आदमी का गुज़ारा आराम से हो जाता था।

ऐसे ही दिन गुज़र रहे थे। एक दिन वह आदमी बिना बताए काम पर नहीं आया। उसके न आने से सेठ का काम रूक गया।

तब सेठ ने सोचा कि यह आदमी इतने दिनों से ईमानदारी से काम कर रहा है। मैंने कब से इसकी तन्ख्वाह नहीं बढ़ाई। इतने पैसों में इसका गुज़ारा कैसे होता होगा?

सेठ ने सोचा कि अगर इस आदमी की तन्ख्वाह बढ़ा दी जाए, तो यह और मेहनत और लगन से काम करेगा। उसने उसी महीने से ही उस आदमी की तनख्वाह बढ़ा दी।

उस आदमी को जब एक तारीख को बढ़े हुए पैसे मिले, तो वह हैरान रह गया। लेकिन वह कुछ नहीं बोला और चुपचाप पैसे रख लिये... धीरे-धीरे बात आई गई हो गयी। कुछ महीनों बाद वह आदमी फिर कुछ दिन ग़ैर हाज़िर हो गया।

यह देखकर सेठ को बहुत गुस्सा आया। वह सोचने लगा- कैसा कृतघ्न आदमी है। मैंने इसकी तनख्वाह बढ़ाई, पर न तो इसने धन्यवाद दिया और न ही अपने काम की जिम्मेदारी समझी।

इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ? यह नहीं सुधरेगा! और उसी दिन सेठ ने बढ़ी हुई तनख्वाह वापस लेने का फैसला कर लिया।

अगली 1 तारीख को उस आदमी को फिर से वही पुरानी तनख्वाह दी गयी। लेकिन हैरानी यह कि इस बार भी वह आदमी चुप रहा।

उसने सेठ से ज़रा भी शिकायत नहीं की। यह देख कर सेठ से रहा न गया और वह पूछ बैठा- बड़े अजीब आदमी हो भाई। जब मैंने तुम्हारे ग़ैर-हाज़िर होने के बाद पहले तुम्हारी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तब भी तुम कुछ नहीं बोले। और आज जब मैंने तुम्हारी ग़ैर-हाज़री पर तन्ख्वाह फिर से कम करके दी, तुम फिर भी खामोश रहे। इसकी क्या वजह है?

उस आदमी ने जवाब दिया- जब मैं पहली बार ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर एक बच्चा पैदा हुआ था। उस वक्त आपने जब मेरी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तो मैंने सोचा कि ईश्वर ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेजा है। इसलिए मैं ज्यादा खुश नहीं हुआ...

जिस दिन मैं दोबारा ग़ैर-हाजिर हुआ, उस दिन मेरी माता जी का निधन हो गया था। आपने उसके बाद मेरी तन्ख्वाह कम कर दी, तो मैंने यह मान लिया कि मेरी माँ अपने हिस्से का अपने साथ ले गयीं...

फिर मैं इस तनख्वाह की ख़ातिर क्यों परेशान होऊँ?

यह सुनकर सेठ गदगद हो गया। उसने उस आदमी को गले से लगा लिया और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। उसके बाद उसने न सिर्फ उस आदमी की तनख्वाह पहले जैसे कर दी, बल्कि उसका और ज्यादा सम्मान करने लगा।

शिक्षा:-
हमारे जीवन में अक्सर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की घटनाएं होती रहती हैं।

जो आदमी एक अच्छी घटना से खुश होकर अनावश्यक उछलता नहीं, और नकारात्मक घटनाओं पर अनावश्यक दु:ख नहीं मनाता और हर दशा में अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखते हुए सच्ची लगन और ईमानदारी से कार्य करता रहता है, वही आदमी जीवन में स्थाई सफलता प्राप्त करता है।
615 views00:35
ओपन / कमेंट
2022-04-21 19:35:52
#motvational_story


आज्ञा पालन


एक समय की बात है। रेगिस्तान के किनारे स्थित एक गाँव में एक व्यापारी रहता था। वह ऊँटों का व्यापार करता था। वह ऊँटों के बच्चों को खरीदकर उन्हें शक्तिशाली बनाकर बेचा करता था। इससे वह ढेर सारा लाभ कमाता था।

व्यापारी ऊँटों को पास के जंगल में घास चरने के लिए भेज देता था। जिससे उनके चारे का खर्च बचता था। उनमें से एक ऊँट का बच्चा बहुत शैतान था। उसकी हरकतें पूरे समूह की चिंता का विषय था। वह प्राय: समूह से दूर चलता था और इस कारण पीछे रह जाता था। बड़े ऊँट हरदम उसे समझाते थे पर वह नहीं सुनता था इसलिए उन सब ने उसकी परवाह करना छोड़ दिया था।

व्यापारी को उस छोटे ऊँट से बहुत प्रेम था इसलिए उसने उसके गले में घंटी बाँध रखी थी। जब भी वह सिर हिलाता तो उसकी घंटी बजती थी जिससे उसकी चाल एवं स्थिति का पता चल जाता था।

एक बार उस स्थान से एक शेर गुजरा जहाँ ऊँट चर रहे थे। उसे ऊँट की घंटी के द्वारा उनके होने का पता चल गया था। उसने फसल में से झांककर देखा तो उसे ज्ञात हुआ कि ऊँट का बड़ा समूह है लेकिन वह ऊँटों पर हमला नहीं कर सकता था क्योंकि समूह में ऊँट उससे बलशाली थे। इस कारण वह मौके की तलाश में वहाँ छुपकर खड़ा हो गया।

समूह के एक बड़े ऊँट को खतरे का आभास हो गया। उसने समूह को गाँव वापस चलने की चेवातानी दी और उन्हें पास पास चलने को कहा। ऊँटों ने एक मंडली बनाकर जंगल से बाहर निकलना आरम्भ कर दिया। शेर ने मौके की तलाश में उनका पीछा करना शुरू कर दिया।

बड़े ऊँट ने विशेषकर छोटे ऊँट को सावधान किया था। कही वह कोई परेशानी न खड़ी कर दे। पर छोटे ऊँट ने ध्यान नहीं दिया और वह लापरवाही से चलता रहा।

छोटा ऊँट अपनी मस्ती में अन्य ऊँटों से पीछे रह गया। जब शेर ने उसको देखा तो वह उस पर झपट पड़ा। छोटा ऊँट अपनी जान बचाने के लिए इधर - उधर भागा, पर वह अपने आप को उस शेर से बचा नहीं पाया। उसका अंत बुरा हुआ क्योंकि उसने अपने बड़ों की आज्ञा का पालन नहीं किया था।

शिक्षा:-

हमें अपनी भलाई के लिए अपने माता-पिता एवं बड़ों की आज्ञा का पालन करना चाहिए।
688 viewsedited  16:35
ओपन / कमेंट
2022-04-21 03:35:30
#motivational

घोंसला

कभी कबूतर का घोंसला देखा है । टूटा, उजड़ा सा और कभी कभी तो होता ही नही हैं ,ऐसा क्यों?

बात उस जमाने की है जब कबूतर झाड़ियों में अण्डे दिया करते थे। लोमड़ी आती और उनके अण्डे खा जाती। रखवाली का कोई ठीक प्रबन्ध न बन पड़ा तो कबूतरों ने चिड़ियाँ से बचाव का उपाय पूछा।

चिड़ियाँ ने कहा,"पेड़ पर घोंसला बनाने के अलावा और कोई चारा नहीं।"

कबूतर ने घोंसला बनाया पर वह ठीक तरह बन न सका। आखिर उसने तय किया कि चिड़ियाँ की सहायता से घोंसला बनाने का काम पूरा किया जाय।

चिड़ियाँ को बुलाया तो वे खुशी खुशी आई और कबूतर को अच्छा घोंसला बनाना सिखाने लगी। अभी बनना शुरू ही हुआ था कि कबूतर ने कहा- "ऐसा बनाना तो हमें आता हैं, यों तो हमीं बना लेंगे।"

चिड़ियाँ वापिस चली गई। कबूतर ने बहुत कोशिश की, पर घोंसला ठीक से बना नहीं। वह फिर चिड़ियाँ के पास गया। चिढ़ती हुई वे फिर आई और तिनके ठीक तरह से जमाना सिखाने लगी। आधा काम भी पूरा न हो पाया था कि कबूतर उचका। उसने कहा- “ऐसे तो मैं जानता ही हूँ।”

चिड़ियाँ वापिस चली गई। कबूतर लगा रहा, पर फिर भी वह बना न सका।

चिड़ियाँ के पास फिर पहुँचा तो उसने साफ इनकार कर दिया और कहा - "जो जानता कुछ नहीं और मानता है कि मैं सब कुछ जानता हूँ, ऐसे प्राणी को कोई कुछ नहीं सिखा सकता।"

नासमझ कबूतर अपने अहंकार में किसी से कुछ न सीख सका और आज तक उसका घोंसला अन्य चिड़ियों की तरह नहीं बनता है, वह टुटा फूटा ही बना पाता है ।

कहानी कहती है कि..

आज सबसे बडी विडंबना यह है कि हम सोचते है कि हमसब कुछ जानते है, जबकि सच्चाई यह है की हम बहुत कुछ नहीं जानते हैं!!

सिर्फ और सिर्फ हमारा अहंकार ही हमारी प्रगति को रोक सकता है और कोई नही।

जीवन मे सफलता का रहस्य , लगातार सीख रहना!!
609 views00:35
ओपन / कमेंट
2022-04-21 03:32:27
#motivational

बगुला और केकड़ा


एक वन प्रदेश में एक बहुत बडा तालाब था। हर प्रकार के जीवों के लिए उसमें भोजन सामग्री होने के कारण वहां नाना प्रकार के जीव, पक्षी, मछलियां, कछुए और केकडे आदि वास करते थे। पास में ही बगुला रहता था, जिसे परिश्रम करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। उसकी आंखें भी कुछ कमज़ोर थीं। मछलियां पकडने के लिए तो मेहनत करनी पडती हैं, जो उसे खलती थी। इसलिए आलस्य के मारे वह प्रायः भूखा ही रहता। एक टांग पर खडा यही सोचता रहता कि क्या उपाय किया जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाए रोज भोजन मिले। एक दिन उसे एक उपाय सूझा तो वह उसे आजमाने बैठ गया।

बगुला तालाब के किनारे खडा हो गया और लगा आंखों से आंसू बहाने। एक केकडे ने उसे आंसू बहाते देखा तो वह उसके निकट आया और पूछने लगा 'मामा, क्या बात है भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने की बजाय खडे आंसू बहा रहे हो?'

बगुले ने ज़ोर की हिचकी ली और भर्राए गले से बोला
'बेटे, बहुत कर लिया मछलियों का शिकार। अब मैं यह पाप कार्य और नहीं करुंगा। मेरी आत्मा जाग उठी हैं। इसलिए मैं निकट आई मछलियों को भी नहीं पकड रहा हूं। तुम तो देख ही रहे हो।'

केकडा बोला 'मामा, शिकार नहीं करोगे, कुछ खाओगे नहीं तो मर नहीं जाओगे?'

बगुले ने एक और हिचकी ली 'ऐसे जीवन का नष्ट होना ही अच्छा है बेटे, वैसे भी हम सबको जल्दी मरना ही है। मुझे ज्ञात हुआ है कि शीघ्र ही यहां बारह वर्ष लंबा सूखा पडेगा।'
बगुले ने केकडे को बताया कि यह बात उसे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई हैं, जिसकी भविष्यवाणी कभी ग़लत नहीं होती। केकडे ने जाकर सबको बताया कि कैसे बगुले ने बलिदान व भक्ति का मार्ग अपना लिया हैं और सूखा पडने वाला हैं।
उस तालाब के सारे जीव मछलियां, कछुए, केकडे, बत्तखें व सारस आदि दौडे-दौडे बगुले के पास आए और बोले 'भगत मामा, अब तुम ही हमें कोई बचाव का रास्ता बताओ। अपनी अक्ल लडाओ तुम तो महाज्ञानी बन ही गए हो।'

बगुले ने कुछ सोचकर बताया कि वहां से कुछ कोस दूर एक जलाशय हैं जिसमें पहाडी झरना बहकर गिरता हैं। वह कभी नहीं सूखता। यदि जलाशय के सब जीव वहां चले जाएं तो बचाव हो सकता हैं। अब समस्या यह थी कि वहां तक जाया कैसे जाएं? बगुले भगत ने यह समस्या भी सुलझा दी 'मैं तुम्हें एक-एक करके अपनी पीठ पर बिठाकर वहां तक पहुंचाऊंगा क्योंकि अब मेरा सारा शेष जीवन दूसरों की सेवा करने में गुजरेगा।'
सभी जीवों ने गद्-गद् होकर ‘बगुला भगतजी की जै’ के नारे लगाए।

अब बगुला भगत के पौ-बारह हो गई। वह रोज एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता और कुछ दूर ले जाकर एक चट्टान के पास जाकर उसे उस पर पटककर मार डालता और खा जाता। कभी मूड हुआ तो भगतजी दो फेरे भी लगाते और दो जीवों को चट कर जाते तालाब में जानवरों की संख्या घटने लगी। चट्टान के पास मरे जीवों की हड्डियों का ढेर बढने लगा और भगत जी की सेहत बनने लगी। खा-खाकर वह खूब मोटे हो गए। मुख पर लाली आ गई और पंख चर्बी के तेज से चमकने लगे। उन्हें देखकर दूसरे जीव कहते 'देखो, दूसरों की सेवा का फल और पुण्य भगतजी के शरीर को लग रहा है।'

बगुला भगत मन ही मन खूब हंसता। वह सोचता कि देखो दुनिया में कैसे-कैसे मूर्ख जीव भरे पडे हैं, जो सबका विश्वास कर लेते हैं। ऐसे मूर्खों की दुनिया में थोडी चालाकी से काम लिया जाए तो मजे ही मजे हैं। बिना हाथ-पैर हिलाए खूब दावत उडाई जा सकती है संसार से मूर्ख प्राणी कम करने का मौक़ा मिलता है बैठे-बिठाए पेट भरने का जुगाड हो जाए तो सोचने का बहुत समय मिल जाता हैं।
बहुत दिन यही क्रम चला। एक दिन केकडे ने बगुले से कहा 'मामा, तुमने इतने सारे जानवर यहां से वहां पहुंचा दिए, लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आई।'

भगत जी बोले 'बेटा, आज तेरा ही नंबर लगाते हैं, आजा मेरी पीठ पर बैठ जा।'

केकडा खुश होकर बगुले की पीठ पर बैठ गया। जब वह चट्टान के निकट पहुंचा तो वहां हड्डियों का पहाड देखकर केकडे का माथा ठनका। वह हकलाया 'यह हड्डियों का ढेर कैसा है? वह जलाशय कितनी दूर है, मामा?'
बगुला भगत ठां-ठां करके खूब हंसा और बोला 'मूर्ख, वहां कोई जलाशय नहीं है। मैं एक- एक को पीठ पर बिठाकर यहां लाकर खाता रहता हूं। आज तू मरेगा।'

केकडा सारी बात समझ गया। वह सिहर उठा परन्तु उसने हिम्मत न हारी और तुरंत अपने जंबूर जैसे पंजों को आगे बढाकर उनसे दुष्ट बगुले की गर्दन दबा दी और तब तक दबाए रखी, जब तक उसके प्राण पखेरु न उड गए। फिर केकडा बगुले भगत का कटा सिर लेकर तालाब पर लौटा और सारे जीवों को सच्चाई बता दी कि कैसे दुष्ट बगुला भगत उन्हें धोखा देता रहा।

शिक्षा:-
दूसरों की बातों पर आंखें मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए, वास्तविक परिस्थिति के बारे में पहले पता लगा लेना चाहिए, हो सकता है सामने वाला मनगढंत कहानियाँ बना रहा हो और आपको लुभाने की कोशिश कर रहा हो।
515 views00:32
ओपन / कमेंट
2022-03-30 19:00:29
#motivational story

भरोसा

कल दोपहर घर के सामने छोटे से नीम के पेड़ के नीचे खड़ा होकर मैं मोबाइल पर बात कर रहा था। पेड़ की दूसरी तरफ एक गाय-बछड़े का जोड़ा बैठा सुस्ता रहा था और जुगाली भी कर रहा था।

उतने में एक सब्जी वाला पुकार लगाता हुआ आया। उसकी आवाज़ पर गाय के कान खड़े हुए और उसने सब्जी विक्रेता की तरफ देखा।

तभी पड़ोस से एक महिला आयी और सब्जियाँ खरीदने लगी। अंत में मुफ्त में धनियाँ, मिर्ची न देने पर उसने सब्जियाँ वापस कर दी।

महिला के जाने के बाद सब्जी विक्रेता ने पालक के दो बंडल खोले और गाय-बछड़े के सामने डाल दिए...

मुझे हैरत हुई और जिज्ञासावश उसके ठेले के पास गया। खीरे खरीदे और पैसे देते हुए उससे पूछा कि उसने 5 रुपये की धनियां मिर्ची के पीछे लगभग 50 रुपये के मूल्य की सब्जियों की बिक्री की हानि क्यों की ?

उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- भईया जी, यह इनका रोज़ का काम है। 1-2 रुपये के प्रॉफिट पर सब्जी बेच रहा हूँ। इस पर भी फ्री... न न न!

मैंने कहा- तो गइया के सामने 2 बंडल पालक क्यों बिखेर दिया ?

उसने कहा- फ्री की धनियां मिर्ची के बाद भी यह भरोसा नहीं है कि यह कल मेरी प्रतीक्षा करेंगी किन्तु यह गाय-बछड़ा मेरा जरूर इंतज़ार करते हैं और भईया जी, मैं इनको कभी मायूस भी नहीं करता हूँ। मेरे ठेले में कुछ न कुछ रहता ही है इनके लिए। मैं इन्हें रोज खिलाता हूँ। अक्सर ये हमको यहाँ पेड़ के नीचे बैठी हुई मिलती हैं।

शिक्षा:-
मुफ्त में उन्हें ही खिलाना चाहिए जो हमारी कद्र करे और जिन्हें हमसे ही अभिलाषा हो।
736 views16:00
ओपन / कमेंट
2022-03-22 19:59:36
#motivational_story

पिता द्वारा पुत्र को सीख

पिता और पुत्र साथ-साथ टहलने निकले,वे दूर खेतों की तरफ निकल आये, तभी पुत्र ने देखा कि रास्ते में, पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते उतरे पड़े हैं, जो ...संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे।

पुत्र को मजाक सूझा. उसने पिता से कहा ~ क्यों न आज की शाम को थोड़ी शरारत से यादगार बनायें,आखिर ... मस्ती ही तो आनन्द का सही स्रोत है. पिता ने असमंजस से बेटे की ओर देखा।

पुत्र बोला ~ हम ये जूते कहीं छुपा कर झाड़ियों के पीछे छुप जाएं.जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा आएगा.उसकी तलब देखने लायक होगी, और इसका आनन्द मैं जीवन भर याद रखूंगा।

पिता, पुत्र की बात को सुन गम्भीर हुये और बोले ~ बेटा ! किसी गरीब और कमजोर के साथ उसकी जरूरत की वस्तु के साथ इस तरह का भद्दा मजाक कभी न करना. जिन चीजों की तुम्हारी नजरों में कोई कीमत नहीं,वो उस गरीब के लिये बेशकीमती हैं. तुम्हें ये शाम यादगार ही बनानी है, तो आओ .. आज हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छुप कर देखें कि ... इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है.पिता ने ऐसा ही किया और दोनों पास की ऊँची झाड़ियों में छुप गए।

मजदूर जल्द ही अपना काम ख़त्म कर जूतों की जगह पर आ गया. उसने जैसे ही एक पैर जूते में डाले उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ, उसने जल्दी से जूते हाथ में लिए और देखा कि ...अन्दर कुछ सिक्के पड़े थे।

उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से उन्हें देखने लगा.फिर वह इधर-उधर देखने लगा कि उसका मददगार शख्स कौन है ? दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आया, तो उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए. अब उसने दूसरा जूता उठाया, उसमें भी सिक्के पड़े थे,मजदूर भाव विभोर हो गया।
वो घुटनो के बल जमीन पर बैठ ...आसमान की तरफ देख फूट-फूट कर रोने लगा।
वह हाथ जोड़ बोला हे भगवान् ! आज आप ही किसी रूप में यहाँ आये थे, समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए आपका और आपके माध्यम से जिसने भी ये मदद दी,उसका लाख-लाख धन्यवाद।
आपकी सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी को दवा और भूखे बच्चों को रोटी मिल सकेगी.तुम बहुत दयालु हो प्रभु ! आपका कोटि-कोटि धन्यवाद।
मजदूर की बातें सुन ... बेटे की आँखें भर आयीं।
पिता ने पुत्र को सीने से लगाते हुयेे कहा ~क्या तुम्हारी मजाक मजे वाली बात से जो आनन्द तुम्हें जीवन भर याद रहता उसकी तुलना में इस गरीब के आँसू और दिए हुये आशीर्वाद तुम्हें जीवन पर्यंत जो आनन्द देंगे वो उससे कम है, क्या ?
बेटे ने कहा पिताजी .. आज आपसे मुझे जो सीखने को मिला है, उसके आनंद को मैं अपने अंदर तक अनुभव कर रहा हूँ. अंदर में एक अजीब सा सुकून है।
आज के प्राप्त सुख और आनन्द को मैं जीवन भर नहीं भूलूँगा. आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था.आज तक मैं मजा और मस्ती-मजाक को ही वास्तविक आनन्द समझता था, पर आज मैं समझ गया हूँ कि लेने की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है।
आइए हम भी इस कहानी के माध्यम से स्वयं तथा अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा दें! कि कभी भी किसी भी परिस्थिति में किसी का मजाक ना उड़ाएं। अगर आनंद लेना ही है तो परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप में किसी की सहायता करके लें। वह आनंद आपको तथा जिस की सहायता की उसको जिंदगी भर नहीं भूलेगा, तथा आपको परोक्ष रूप में आशीर्वाद देगा वह अलग है
711 views16:59
ओपन / कमेंट
2022-03-22 19:29:34
#motivational_story
चिंता

एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं। जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था।

राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब संन्यासी से करवा दिया। राजा ने सोचा कि एक संन्यासी ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है।

विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी संन्यासी की कुटिया में रहने आ गई। कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं। उसने अपने संन्यासी पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं? संन्यासी ने जवाब दिया कि ये रोटियां कल के लिए रखी हैं, अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे। संन्यासी का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी। राजकुमारी ने कहा कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें ये लगता है कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप तो सिर्फ भक्ति करते हैं और कल की चिंता करते हैं।

सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है। अगले दिन की चिंता तो जानवर भी नहीं करते हैं, हम तो इंसान हैं। अगर भगवान चाहेगा तो हमें खाना मिल जाएगा और नहीं मिलेगा तो रातभर आनंद से प्रार्थना करेंगे।

ये बातें सुनकर संन्यासी की आंखें खुल गई। उसे समझ आ गया कि उसकी पत्नी ही असली संन्यासी है। उसने राजकुमारी से कहा कि आप तो राजा की बेटी हैं, राजमहल छोड़कर मेरी छोटी सी कुटिया में आई हैं, जबकि मैं तो पहले से ही एक फकीर हूं, फिर भी मुझे कल की चिंता सता रही थी। सिर्फ कहने से ही कोई संन्यासी नहीं होता, संन्यास को जीवन में उतारना पड़ता है। आपने मुझे वैराग्य का महत्व समझा दिया।

शिक्षा:-
अगर हम
भगवान की भक्ति करते हैं तो विश्वास भी होना चाहिए कि भगवान हर समय हमारे साथ है। उसको (भगवान) हमारी चिंता हमसे ज्यादा रहती हैं।

कभी आप बहुत परेशान हों, कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा हो तो आप आँखें बंद करके विश्वास के साथ पुकारें, सच मानिये थोड़ी देर में आपकी समस्या का समाधान मिल जायेगा।
578 views16:29
ओपन / कमेंट