ग़ज़लजाने कितनी उड़ान बाक़ी है
इस परिंदे में जान बाक़ी है
जितनी बटनी थी बट चुकी ये ज़मीं
अब तो बस आसमान बाक़ी है
अब वो दुनिया अजीब लगती है
जिसमें अम्न-ओ-अमान बाक़ी है
सर क़लम होंगे कल यहाँ उनके
जिनके मुँह में ज़बान बाक़ी है।
╭─❀⊰ 𝐉𝐨𝐢𝐧
@Motivational_lifechanger