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❛❛मेरे हिस्से का मुझको मुक़द्दर नहीं मिला, नींद जब आने लगी बि | मोहब्बत-ए-क़िस्सा 🔥

❛❛मेरे हिस्से का मुझको मुक़द्दर नहीं मिला,
नींद जब आने लगी बिस्तर नहीं मिला।

दीमक लग गयी कश्तियों में पड़े पड़े,
चलाने को मग़र कोई समंदर नहीं मिला।

एक उम्र बिता दी मकां बदलते बदलते,
किसी बस्ती में हमको घर नहीं मिला।

कितनी दूर है मंज़िल कोई ख़बर नहीं,
अभी तलक मील का पत्थर नहीं मिला।

मज़हब वाले ही मिले हर तरफ हमको,
बशर की बस्ती में लेकिन बशर नहीं मिला।

थी जीने की चाहत तो वजह नहीं मिली,
ख़ुदकुशी करनी चाही तो ज़हर नहीं मिला!!❜❜