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मंथनहब परिवार को गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं गुर | ManthanHub

मंथनहब परिवार को गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं

गुरुपूर्णिमा को व्यासपूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि भगवान वेदव्यासजी द्वारा इसकी शुरुवात हुई थी।
अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में हमे विविध विषयों के कई मार्गदर्शक मिलते है, जो हमारे जीवन को सुलभ बनाने में काफी बड़ी भूमिका निभाते है। उनके प्रति अवश्य हमे सदा कृतज्ञ रहना चाहिए। परंतु गुरुपूर्णिमा, जो हमारे आध्यात्मिक गुरु है, केवल उन्हीं को समर्पित है। हमारे आध्यात्मिक गुरु हमारे जन्म-जन्म के अज्ञान और अंधकार को दूर करते है, हमारी वासना को मिटाकर उसे उपासना के मार्ग में लगाते हुए हमे आत्मज्ञान प्रदान करते है और हमे ईश्वर के साथ एकाकार करते है। ऐसे ईश्वरस्वरूप गुरुदेव को याद करने के लिए, उनकी पूजा, उपासना, वंदना, स्तुति करने के लिए वर्ष में जो एक दिन है, वह है गुरुपूर्णिमा।

गुरुमहिमा शास्त्रों में कई जगह आती है,

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥


भावार्थ: गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम.

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पादं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।


भावार्थ: जो अखंड है, संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है,निरंतर लहराता है, उस (भगवान) का तत्व रूप,जो मेरे भीतर प्रकट होता है, मुझे दर्शन देता है, मैं उस गुरु को प्रणाम करता हूं।

भगवान शिवजी ने माता पार्वती से कहा,

धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोद्भवः।
धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद् गुरुभक्तता।।


भावार्थ: हे पार्वती ! जिसके अंदर गुरुभक्ति हो उसकी माता धन्य है, उसका पिता धन्य है, उसका वंश धन्य है, उसके वंश में जन्म लेने वाले धन्य हैं, समग्र धरती माता धन्य है।

यस्य दर्शनमात्रेण मनस: स्यात प्रसन्नता।
स्वयं भूयात धृतिशांति: स भवेत् परमो गुरु:।।


भावार्थ: जिनके दर्शनमात्र से मन प्रसन्न होता है, अपने-आप धैर्य और शांति आ जाती है, वे परम गुरु है।

काशीक्षेत्रम निवासश्च जान्हवी चरणोंदकम।
गुरुविश्वेश्वर: साक्षात तारकम् ब्रह्मनिश्चय:।।


भावार्थ: गुरुदेव का निवासस्थान काशीक्षेत्र है। श्रीगुरुदेव का पादोदक गंगाजी है। गुरुदेव भगवान विश्वनाथ और निश्चित ही साक्षात तारक ब्रह्म है।

शिवजी ने स्कंद पुराण में कहा है,
"जो मानव रूप में गुरु रहते है, जिन्हे आत्म और ईश्वर का ज्ञान होता है, जो ब्रह्मज्ञानी होते है, वो साक्षात शिव समान होते है।"
उनकी स्तुति, पूजा, उपासना और भक्ति के लिए शिवजी ने भी कहा है।

कोई भी व्यक्ति अनेक जन्मों के पुण्य से ही ऐसे गुरुभक्ति को प्राप्त करता है और गुरूतत्व को समझ पाता है। गुरु की महिमा अपरम्पार है, जिन्होंने गुरु की कृपा को प्राप्त किया उन्होंने युग को ही बदल दिया, ऐसे कई उदाहरण हमे देखने मिलते है।

आदि शंकराचार्यजी, गोविंदपादाचार्य गुरु के शरण गए थे। जब भारतभूमि में चारो ओर संस्कृति का पतन हो रहा था तब आदि शंकराचार्य ही थे जिन्होंने सबसे पहले भारतीय सनातन संस्कृति का उद्धार किया था।

पूरे भारत में जब भय का माहौल था और लोग आत्मविस्मृति का शिकार हुए थे, तब समर्थ गुरु रामदासजी ने शिवाजी महाराज को दीक्षित किया। समर्थ गुरु रामदासजी की आध्यात्मिक शक्ति और आत्मिक शांति का ही फल था के भारत दास्यता से मुक्त हो पाया।

जब भारत में दीनता, हीनता एवं अंधश्रद्धा का साम्राज्य फैला था और दुनिया भारतभूमि को पिछड़े हुआ समझकर दुर्व्यवहार करती थी तब श्रीरामकृष्ण परमहंस जी के शिष्य स्वामी विवेकानंद जी ने अपने सिंहगर्जना से सम्पूर्ण विश्व को भारतीय आध्यात्मिकता का परिचय दिया।

ऐसे कई महापुरुष हुए है, उनके जीवन को बारीकी से देखेगे तो यही मिलेगा के वे सब गुरु के ही उपासक थे और ईश्वर के ज्ञान से विभूषित थे । ऐसे गुरुओ को याद करने के लिए और हृदय में धारण करके उनका मानसिक पूजन करने के लिए यह गुरुपूर्णिमा है।
यही गुरुपूर्णिमा का वास्तविक अर्थ है।