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दिल के जज़्बात अल्फ़ाज़ बनकर कलम से निकलते है।
❤️Lᴏᴠᴇ Sʜᴀʏᴀʀɪ❤️
☕Cʜᴀʏ Sʜᴀʏᴀʀɪ☕
🖤Sᴀᴅ Sʜᴀʏᴀʀɪ🖤
💝Mᴏᴛɪᴠᴀᴛɪᴏɴᴀʟ Sʜᴀʏᴀʀɪ💝
💔Bʀᴀᴋᴇᴜᴘ Sʜᴀʏᴀʀɪ💔
🌴Nᴀᴛᴜʀᴇ Sʜᴀʏᴀʀɪ🌴
Fᴏʀ Mᴏʀᴇ Jᴏɪɴ Oᴜʀ Cʜᴀɴɴᴇʟ
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नवीनतम संदेश 38
2021-10-09 16:03:29
•?((¯°·..• कलम-ए-इश्क •..·°¯))؟•
बस कहने की बाते है
कोई मर नही जाएगा मेरे बिना...
𝒦𝒶𝓁𝒶𝓂-𝒜𝑒-𝐼𝓈𝒽𝓀
390 views𝓝𝓮𝓮𝓽𝓾 𝓡𝓪𝓳𝓹𝓾𝓻𝓸𝓱𝓲𝓽, 13:03
2021-10-09 16:01:23
•?((¯°·..• कलम-ए-इश्क •..·°¯))؟•
कुछ पन्ने जिंदगी के फाड़ने है मुझे................
सुकून के लिए.........
#Nk
𝒦𝒶𝓁𝒶𝓂-𝒜𝑒-𝐼𝓈𝒽𝓀
388 views𝓝𝓮𝓮𝓽𝓾 𝓡𝓪𝓳𝓹𝓾𝓻𝓸𝓱𝓲𝓽, edited 13:01
2021-10-09 15:57:25
•?((¯°·..• कलम-ए-इश्क •..·°¯))؟•
I can proudly say
Mene caste dekh kar kabhi dost nhi banaye.. 𝒦𝒶𝓁𝒶𝓂-𝒜𝑒-𝐼𝓈𝒽𝓀
394 views𝓝𝓮𝓮𝓽𝓾 𝓡𝓪𝓳𝓹𝓾𝓻𝓸𝓱𝓲𝓽, 12:57
2021-10-09 15:55:13
•?((¯°·..• कलम-ए-इश्क •..·°¯))؟•
Me tab bhi teri rahugi
Jab me nhi rahugi ..
𝒦𝒶𝓁𝒶𝓂-𝒜𝑒-𝐼𝓈𝒽𝓀
396 views𝓝𝓮𝓮𝓽𝓾 𝓡𝓪𝓳𝓹𝓾𝓻𝓸𝓱𝓲𝓽, 12:55
2021-10-09 15:53:04
•?((¯°·..• कलम-ए-इश्क •..·°¯))؟•
Mere jindgi me khushiyon ase aati hai
Jese YouTube par 5 second ka ad ...
𝒦𝒶𝓁𝒶𝓂-𝒜𝑒-𝐼𝓈𝒽𝓀
388 views𝓝𝓮𝓮𝓽𝓾 𝓡𝓪𝓳𝓹𝓾𝓻𝓸𝓱𝓲𝓽, 12:53
2021-10-09 13:39:24
मेरे शब्दों पर वो चले गए,
मेरी आँखों को जो पढ़ ना सके।।
-लफ़्ज-ए-प्रशान्त 𝐉𝐨𝐢𝐧 ☞︎︎︎ @m_r_w_r_i_t_e_r
387 viewsPʀᴀsʜᴀɴᴛ, 10:39
2021-10-09 13:37:27
•?((¯°·..• कलम-ए-इश्क •..·°¯))؟•
मेरे शब्दों पर वो चले गए,
मेरी आँखों को जो पढ़ ना सके।।
-लफ़्ज-ए-प्रशान्त
𝒦𝒶𝓁𝒶𝓂-𝒜𝑒-𝐼𝓈𝒽𝓀
395 viewsPʀᴀsʜᴀɴᴛ, 10:37
2021-10-09 13:35:54
•?((¯°·..• कलम-ए-इश्क •..·°¯))؟•
जमाना कमब्खत फ़ास्ट फ़ूड का है
धीमी आंच पर इश्क पके भी तो कैसे 𝒦𝒶𝓁𝒶𝓂-𝒜𝑒-𝐼𝓈𝒽𝓀
394 views𝓝𝓮𝓮𝓽𝓾 𝓡𝓪𝓳𝓹𝓾𝓻𝓸𝓱𝓲𝓽, 10:35
2021-10-09 13:29:55
•?((¯°·..• कलम-ए-इश्क •..·°¯))؟•
मेरी बाते उन्हें पसंद नहीं आती है,
यही एक वजह जो हमेशा बाते अधूरी रह जाती है।।
-लफ़्ज-ए-प्रशान्त
𝒦𝒶𝓁𝒶𝓂-𝒜𝑒-𝐼𝓈𝒽𝓀
394 viewsPʀᴀsʜᴀɴᴛ, 10:29
2021-10-09 13:29:04
•?((¯°·..• कलम-ए-इश्क •..·°¯))؟•
चिकनी पीली मिट्टी को
कुएँ के मीठे पानी में गूँथ कर
बनाया था माँ ने वह चूल्हा
और पूरे पंद्रह दिन तक
तपाया था जेठ की धूप में
दिन - दिन भर
उस दिन
आषाढ़ का पहला दौंगड़ा गिरा,
हमारे घर का बगड़
बूँदों में नहा कर महक उठा था,
रसोई भी महक उठी थी -
नए चूल्हे पर खाना जो बन रहा था।
गाय के गोबर में
गेहूँ का भुस गूँथ कर
उपले थापती थी माँ बड़े मनोयोग से
और आषाढ़ के पहले
बिटौड़े में सजाती थी उन्हें
बड़ी सावधानी से।
बूंदाबांदी के बीच बिटौड़े में से
बिना भिगोए उपले लाने में
जो सुख मिलता था ,
आज लॉकर से गहने लाने में भी नहीं मिलता।
सूखे उपले
भक्क से पकड़ लेते थे आग
और
उंगलियों को लपटों से बचाती माँ
गही में सेंकती थी हमारे लिए रोटी
-फूले-फूले फुलके।
गेहूँ की रोटी सिंकने की गंध
बैठक तक ही नहीं , गली तक जाती थी।
हम सब खिंचे चले आते थे
रसोई की ओर।
जब महकता था बारिश में बगड़
और महमहाती थी गेहूँ की गंध से रसोई -
माँ गुनगुना उठती थी
कोई लोकगीत - पीहर की याद का।
माँ के गीतों में प्यार बहुत था
पर पीड़ा और शिकायत भी थी।
बारिश में बना रही हूँ रोटियाँ,
भीगे झोंके भीतर घुसे आते हैं।
मेरे बीरा ! इन झोंकों को रोक दे न!
बड़े बदमाश हैं ये झोंके,
कभी आग को बढ़ा देते हैं
कभी बुझा देते हैं आग को।
आग बढ़ती है
तो रोटी जलने लगती है।
तेरे बहनोई को जली रोटी पसंद नहीं रे!
रोटी को बचाती हूँ तो उँगली जल जाती है।
माँ की उँगलियाँ छालों से भर जाती थीं
पर पिताजी की रोटी पर एक भी काला निशान कभी नहीं दिखा!
माँ के गीतों में प्यार बहुत था
पर पीड़ा और शिकायत भी थी।
बारिश में बना रही हूँ रोटियाँ,
भीगे झोंके भीतर घुसे आते हैं।
मेरे बीरा! इन झोंकों को रोक दे न!
बड़े बदमाश हैं ये झोंके ,
कभी आग को बढ़ा देते हैं
कभी बुझा देते हैं आग को।
आग बुझती है
तो रोटी फूलती नहीं
तेरा भानजा अधफूली रोटी नहीं खाता रे!
बुझी आग जलाती हूँ तो आँखें धुएँ से भर जाती हैं।
माँ की आँखों में मोतियांबिंद उतर आया
पर मेरी थाली में कभी अधफूली रोटी नहीं आई!
माँ के गीतों में प्यार बहुत था
पर पीड़ा और शिकायत भी थी।
रोटी बनाना सीखती मेरी बेटी
जब तवे पर हाथ जला लेती है,
आँखें मसलती
रसोई से निकलती है।
तो लगता है
माँ आज भी गुनगुना रही है।
मेरे बीरा ! इन झोंकों को रोक दे न!
बड़े बदमाश हैं ये झोंके,
कभी आग को बढ़ा देते हैं
कभी बुझा देते हैं आग को।
माँ के गीतों में प्यार बहुत था
पर पीड़ा और शिकायत भी थी.
~ऋषभ देव वर्मा
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𝒦𝒶𝓁𝒶𝓂-𝒜𝑒-𝐼𝓈𝒽𝓀
439 views𝓝𝓮𝓮𝓽𝓾 𝓡𝓪𝓳𝓹𝓾𝓻𝓸𝓱𝓲𝓽, 10:29