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नवीनतम संदेश
2023-01-29 17:35:31एक बूंद ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी एक बूंद कुछ आगे बढ़ी सोचने फिर फिर यही मन में लगी आह क्यों घर छोड़ कर मैं यों बढ़ी। दैव मेरे भाग्य में है क्या बदा मैं बचूंगी या मिलूंगी धूल में या जलूंगी गिर अंगारे पर किसी चू पड़ूंगी या कमल के फूल में। बह गई उस काल कुछ ऐसी हवा वह समुंदर ओर आई अनमनी एक सुंदर सीप का मुंह था खुला वह उसी में जा पड़ी मोती बनी। लोग यों ही हैं झिझकते सोचते जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर किंतु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें बूंद लौं कुछ ओर ही देता है कर।