हिंदी व्याकरण - लोकोक्तियां 01 लोकोक्तियाँ अक्ल बड़ी या भैंस- शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि का महत्व अधिक होता है | अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना- सदा मूर्खतापूर्ण बातें या काम करते रहना। अधजल गगरी छलकत जाए- थोड़ा होने पर अधिक दिखावा करना। अपना हाथ जगन्नाथ- स्वतंत्र व्यक्ति जिसके काम में कोई दखल न दें । अपने पांव पर आप कुल्हाड़ी मारना- अपना अहित स्वयं करना। अपनी अपनी डफली,अपना अपना राग- विचारो का बेमेल होना| अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत- समय गुज़रने पर पछतावा करने से कोई लाभ नहीं होता। अशर्फ़ियाँ लुटाकर कोयलों पर मोहर लगाना- मूल्यवान वस्तु भले ही जाए, पर तुच्छ चीज़ों को बचाना। आसमान से गिरा खजूर में अटका- एक विपत्ति से निकलकर दूसरी में उलझना | आप भला सो जग भला- स्वयं सही हो तो सारा संसार ठीक लगता है | आगे कुआँ पीछे खाई- हर तरफ परेशानी होना; विपत्ति से बचाव का कोई मार्ग न होना | आगे नाथ न पीछे पगहा- कोई भी जिम्मेदारी न होना; पूर्णत: बंधनरहित होना | आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास- इच्छितकार्य न कर पाने पर कोई अन्य कार्य कर लेना| आटे के साथ घुन भी पिसता है- अपराधी के साथ निरपराधी भी दण्ड पा जाताहै | अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा- जहाँ मुखिया ही मूर्ख हो, वहाँ अन्याय ही होता है। अंधों में काना राजा- मूर्खों में थोड़ा सा ज्ञानी। अंधी पीसे कुत्ता खाये- परिश्रमी व्यक्ति के असावधानी पर अन्य व्यक्ति का उपभोग करना| आम के आम गुठलियों के दाम- दुहरा लाभ होना | आँख का अँधा, नाम नैनसुख- गुण न होने पर भी गुण का दिखावा करना। ओखली मे सिर दिया तो मूसल से क्या डर- कठिन कार्यो में उलझ कर विपत्तियों से क्या घबराना | एक अनार सौ बीमार- समान कम चाहने वाले बहुत । एक और एक ग्यारह- एकता मे शक्ति होती है | एक पंथ दो काज- एक प्रयत्न से दोहरा लाभ। एक तो चोरी ऊपर से सीनाज़ोरी- गलती करने पर भी उसे स्वीकार न करके विवाद करना| एक हाथ से ताली नही बजती- झगड़ा एक ओर से नही होता | एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा- अवगुणी में और अवगुणों का आ जाना | एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती- एक स्थान पर दो विचारधारायें नहीं रह सकतीं हैं| JOIN & SHRE ~ @Hindi_Sahitya 710 views09:26