उसने कहा था @Hindi_Sahitya लेखक - चंद्रधर शर्मा गुलेरी प्र | हिन्दी साहित्य / Hindi Literature
उसने कहा था @Hindi_Sahitya
लेखक - चंद्रधर शर्मा गुलेरी
प्रकाशन - 1915 ई. सरस्वती में
पात्र - लहना सिंह, होरा, हजारा सिंह,बोधा सिंह, वजिरा सिंह,अतर सिंह,महा सिंह, कीरत सिंह, पोल्हू राम, अब्दुला।
विषय ; पूर्व दीप्ति शैली की कहानी
प्रेम का आदर्श स्वरूप चित्रित।
त्याग एवम् वीरता की कहानी।
देश प्रेम की कहानी।
वचन बद्धता एवम् उस हेतु कुर्बानी की कहानी
फ्रांस और बेल्जियम में युद्ध की कहानी।
कथावस्तु;
बाल्य वर्ग( तब लहना 12वर्ष का और सूबेदारनी 8 वर्ष की) के एक लड़का लड़की बाज़ार में मिलते हैं, जहां उनके बीच भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है।
रोज - रोज मिलते हैं.. कथा आगे बढ़ जाती है..
देश प्रेम की ओर!!!
महत्त्वपूर्ण बिंदु;
सैन्य जीवनचर्या
" उसने जो कहा था" वह मैंने कर दिखाया ।
लहना सिंह
अमृतसर का जिक्र
बड़े बड़े शहरों के इक्के गाड़ी वालों की ज़बान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बू कार्ट वालों की बोली का मरहम लगावे।
लेखक
यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती नहीं; पर मीठी छूरी की तरह महीन मार करती हुई। लेखक
हट जा जीने जोगिए; हट जा करमांवालिए; हट जा पुत्ता प्यारिए; बच जा लंबी वालिए।
इक्कावान, बंबू कार्ट वाले
वह अपने मामा के केश धोने के लिए दही लेने आया था और वह रसोई के लिए बड़ियां।
लड़की मगरे में ,मामा अतर सिंह के वहां रहती है।
लड़का मांझे में ,गुरूबाजार ,मामा के घर
"तेरी कुड़माई हो गई?"... लड़का
धत्त (शर्म से)।.. लड़की
" हां, हो गई।"...
' कल, देखते नहीं , यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू।'
लड़के की प्रतिक्रिया;
एक लड़के को मोरी में ढकेल दिया।
छावडी वाले की कमाई खोई।
एक कुत्ते को पत्थर मारा।
गोभी वाले ठेले में दूध उड़ेल दिया।
सामने से नहा कर आती हुई किसी वैष्णवी से टकराकर अंधे की उपाधि पाई।
कथन;
नगरकोट का जलजला सुना था, यहां दिन में पच्चीस जलजले होते हैं।
न मालूम बेईमान मिट्टी में लेटे हुए है या घास की पत्तियों में छिपे रहते हैं।
उक्त कथन लहना सिंह के
"तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।"
फिरंगी मेम, लहना को
चार दिन तक पलक नहीं झपकी।
बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही। लहना सिंह
लड़ाई के मामले जमादार या नायक के चलाए नहीं चलते। बड़े अफसर दूर की सोचते हैं।
हजारा सिंह सूबेदार
.. एक धावा हो जाए तो गर्मी आ जाए।"
लहना सिंह
हां, देश क्या है, स्वर्ग है। मैं तो लड़ाई के बाद सरकार से दस घुमा जमीन यहां मांग लूंगा और फलों के बूटे लगाऊंगा। लहना सिंह
जाड़ा क्या है, मौत है, और निमोनिया से मरने वालों को मुरब्बे नहीं मिला करते ।"
वजीरा सिंह , लहना सिंह को कहता है।
लपटन साहब 5 वर्ष से उसकी रेजिमेंट में थें।
कोई जर्मन लपटन के वेश में आता है,,
जगाधरी जिले में नीलगाय और उसके
2 फूट 4इंच लम्बी सींगे..इत्यादि बातों से
उसे बातों ही बातों में लहना समझ जाता है।
होश में आओ। कयामत आई है और लपटन साहब की वर्दी पहन कर आई है।
लहना सिंह वजीर सिंह से
आठ नहीं, दस लाख। एक एक अकालिया सिक्ख सवा लाख के बराबर होता है। चले जाओ।
लहना सिंह, वजीर सिंह से
और हवा ऐसी चल रही थी जैसे बाणभट्ट की भाषा में " दंत वीणा उपदेश आचार्य" कहलाती है।
सुनिए तो, सूबेदारनी होरा को चिट्ठी लिखो , तो मेरा मत्था टेकना लिख देना और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझमें को उसने कहा था वह मैंने कर दिया।
लहना सिंह, हजारा सिंह से
मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है।
जन्म भर की घटनाएं एक एक करके सामने आती हैं।
सारे दृश्यों के रंग साफ होते हैं। समय की धुंध बिल्कुल उन पर से हट जाती है।
लेखक
25 वर्ष बीत गए । अब लहना सिंह न. 77 में जमादार हो गया है।
फ्रांस और बेल्जियम - 68 वीं सूची - मैदान में घावों से मरा - न. 77 सिख राइफल जमादार लहना सिंह
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