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स्त्री-वजूद वजूद स्त्री की तुम क्या परखोगे अनुपस्थिति में तु | हिंदी मंच - सकारात्मक भाव

स्त्री-वजूद

वजूद स्त्री की तुम क्या परखोगे
अनुपस्थिति में तुम्हारी उपस्थिति
माथे पे दर्शायें रखती हैं,
कहते हो जिसे देखकर तुम 'ब्याहता'
सिन्दूर मे
वह तुम्हें लगाएं रखती है।
छोटी-बडी खुशियां क्या?
सौंदर्य सौंप इठलाती हैं
वजूद तेरे चलाने को
पीड़ा भी सह जाती हैं
धो लेती मैल कपडों की,
तकीया- कुशन मे कवर चढा़ लेतीं
चुपके चुपके
ब्याहता बन स्त्री
अपनी उपस्थित छुपा लेती हैं!
चार भागों में बाँट भाग्य
(/बेटी, बहन,पत्नी, माँ/)
हर रिश्ता मन से निभा लेतीं हैं
माना हुआ
जन्म निराश थे बाबा
सुना कलाई भरा भाई का तब,
वचनबद्ध हुआ भाई
अंतिम-सांसो का संवाद हुआ था तब......
' चूनरीयाँ
तेरहवीं मे भी मायका का होगा हक'
रीति के नाम
लेकर आना मिलने
पुरा-पुरा होगा हक'
ससुराल की दहलीज,
बेटा का कर्तव्य
पति का अधिकार
देखेंगे होकर मौन।
मै-ब्याहता,
निश्चित तब बेटी का कर्त्तव्य निभा जाऊगी
मायका के चूनरीयाँ संग
'बेटी-कुल,खानदान'
का फर्ज निभा जाऊगी!
गुडिय़ा से शुरू किया जो सफर
उफ़्फ
सिन्दूरी प्रातःकाल से
जेठ की दोपहरी तक मौन दफना जाऊगी
छूटीं रहेगी केवल वजूद मेरी
मैं स्त्री
स्वयं को धरापुत्री
नाम से सबोधित करा जाउंगी
अभिलाषा नंदनी।