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भरोसे की मिसाल है मेरा इश्क़ बेतरतीब सवालों से फिर कैसा रश्क़ | हिंदी मंच - सकारात्मक भाव

भरोसे की मिसाल है मेरा इश्क़
बेतरतीब सवालों से फिर कैसा रश्क़


उस रोज हमारा मिलना
फिर ....
मिलना रोज़ रोज़
बरकरार है बेख़ौफ़ सा
बेपरवाह यूँ मनमौजी हो रहना

किताबी नहीं अल्फ़ाज़ हमारे
हम करते हैं बातें
चुप चुप सी
गुपचुप इशारों की भी
तब बन जाती है कहानियाँ कई
अपलक रहें हम
बतियाएँ ना पहरों पहर
तो क्या ..बन जाते हैं किस्से
मनघड़न्त कई

कभी कभी
चकित हो जाती हूँ सोच कर
कि ..मिलने की आतुरता
हममें इतनी नहीं
जितनी औरों को तलब है हममें
देखो न ....
हमसे हो कर उड़ती खबरें
कब कैसे
पहुँच जाती है हर कहीं

हम तो होते हैं तल्लीन
एकदूजे में
होश में रह कर भी
अपनी मदहोशी के कायल
तो क्या हवाएँ ही चोर हो जाती हैं
या दीवारें शक्की सोबत की

महकते हैं
मौसम की तरह मिज़ाज़ हमारे
नरम सी मोहब्बत
बहने लगती है रग रग में
पर गैरों की नज़रें
आदतन हो जाती है गिद्द सी
कितने खाली हैं
सबके दिल
सोच के पैमाने भी
बेतुकी बातों से जकड़े हुए है

चलो
जाने भी दो
खोखली हुई इस
मानसिकता के दौर में
कोई समझे भी
कैसे हमें

समझ से परे है साथी
ईह लोक की सत्ता
और संगम से परे है हमारे
होने के कायदे

तुमसे बना मेरा जीवन... !!
.....बस, ऐसी ही लय है जीने की हममें

दीप
Deepa M Khetawat
जोधपुर, राजस्थान से