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ब्रह्ममुहूर्त-ध्यान कक्षा :- 22 नवम्बर 2021 ( सुबह 430 - 530 | 🎧 Hindi Audio Book📚

ब्रह्ममुहूर्त-ध्यान कक्षा :-
22 नवम्बर 2021 ( सुबह 430 - 530 )

◇ व्यायाम एवं योग में कितनी समानता है? और अगर अन्तर है तो कितना अन्तर है ?

उत्तर ~ वर्तमान में शरीर को मोड़ना और मरोड़ना इसी को लोगों ने योग समझ रखा है जो वास्तविकता से बहुत दूर है।

महर्षि पतंजलि ने योग के बारे में कहा है "योगश्चित्त वृत्ति निरोध:" अर्थात मन के उसके विषयों से पूरी तरह हटा देना।
भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने कहा "समत्वं योग उच्यते" अर्थात्‌
द्वन्द्व यानि सुख-दुःख, लाभ-हानि, सर्दी-गर्मी में समता स्थापित कर लेना ही योग है।

मन को संयमित एवं सन्तुलित करने के लिए सबसे पहले अपने आचरणों, व्यवहारों से लेकर शरीर को संतुलित रखना होगा। शरीर को स्वस्थ, संतुलित रखने के लिए शारीरिक अभ्यास करने होंगे। उसी सन्दर्भ में योग में शरीर को संतुलित रखने के लिए "आसन" बताये गये हैं जो सर्वथा शारीरिक अभ्यास है जिसे व्यायाम भी कह सकते हैं, इसी आसन को आज के लोग पूरा योग समझ बैठे हैं।

इस तरह हम समझ सकते हैं कि व्यायाम सिर्फ शरीर को ठीक करने का एक साधन है, जबकि योग शरीर से लेकर मन तक को संयमित करते हुए समाधि एवं मोक्ष प्राप्त करने का साधन है।

इसे एक छोटी सी कहानी से समझते हैं -
एक बार चिमनी लाल को यकीन हो गया उनके गाँव में कुछ भी काम उनके लायक नहीं तो काम की तलाश में पड़ोस की गाँव में चले गये। वहाँ उसने देखा खल्ली ( पशुओं का चारा जो सरसों से बनता है ) बड़ी खपत है। उसने खल्ली बनाने का तरीका सीखा और जुट गया व्यापार में।

सरसों के दाने खरीदता उसको पेराई करके खल्ली निकालता बेच देता और उससे निकला तेल फेंक देता। उसे बिलकुल समझ नहीं थी खल्ली तो एक मात्र अवशेष है जो कीमती तेल निकालने के क्रम में बना है।

ठीक उसी प्रकार शारीरिक स्वास्थ्य तो एक अंग है, योग से इस जीवन मरण के चक्र से निकल मोक्ष तक पहुँचा जा सकता है।

◇ हमारे 24 घण्टे के दिन में लगभग 1/2 घंटा ही वर्तमान में जी पाते हैं? क्या यही हमारे दुःख का कारण है ?

उत्तर ~ वास्तव में 24 घंटे में हम कुछ क्षण भी वर्तमान में नहीं जी पाते हैं जो कुछ क्षण वर्तमान में जीते भी हैं उसकी भी हमें ठीक-ठीक जानकारी नहीं होती वह समय भी बस अनायास ही घटित हो जाता है। एक पल के लिए एक विचार आया और फिर उसी विचारों के साथ एक काल्पनिक यात्रा शुरू हो जाती है और ऐसा लगातार चलता ही रहता है। ऐसा मन के चंचल स्वभाव के कारण होता है।

हमारे दुःख का कारण है अज्ञानता, इसी अज्ञानता के कारण मोह एवं भ्रम उत्पन्न हो जाता है।

◇ मैंने एक दार्शनिक की पुस्तक में पढ़ा है, मन ठीक विपरीत बात को सोचता / विचार करता है जैसे - बन्दर के बारे में सोचने से मना किया जाये तो सिर्फ बन्दर ही सोचता है।
इस बात पर प्रकाश डालें।

उत्तर ~ नहीं, ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि मन सिर्फ विपरीत सोचता है। मन का वास्तविक कार्य है कल्पनाओं की दुनियाँ बना लेना। ऐसा नहीं कि तुम्हें बन्दर सोचने से मना करूँ तभी बन्दर सोचोगे। बन्दर सोचने बोला जाये तब भी बन्दर ही होंगे मन में।

मन एक खाद भरी उपजाऊ जमीन की तरह काम करता है, तुमने उसमें विचार की एक बीज डाला और वह पलक झपकते ही एक विशाल वृक्ष बना के दे देगा।
या मन को एक एक बन्दर की तरह ही जानों वो हर वक्त एक डाली से दूसरे डाली उछलता रहेगा।

एक छोटे से उदाहरण से समझो, आजकल सभी लोग इन्टरनेट का प्रयोग करते हैं। तुमने इन्टरनेट पर ढूंढना शुरू किया। चीन की दीवार के बारे में, कुछ समय बाद पाओगे की तुम मुंबई से दिल्ली की दूरी कितनी है देख रहे हो।

ठीक वैसे ही मन एक विचार को लिया, एक विचार से दूसरे दूसरे से तीसरे विचार पकड़ता रहता है। किसी भी क्षण के लिए शान्त नहीं होता है।


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