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​ब्रह्ममुहूर्त-ध्यान कक्षा :- 19 नवम्बर 2021 ( सुबह 430 - 53 | 🎧 Hindi Audio Book📚

ब्रह्ममुहूर्त-ध्यान कक्षा :-
19 नवम्बर 2021 ( सुबह 430 - 530 )

◇ बहुत कोशिश के बाद भी मन भाग ही जाता है, ध्यान कैसे करें ?
उत्तर ~ मन एक जगह टिक कर रह ही नहीं सकता, यही उसका स्वभाव है और ठीक से देखा जाये तो मन का यह स्वभाव ठीक भी है। यह लाखों सालों में इतना चंचल हो पाया होगा।

इसे समझो, अगर मन चंचल ना होता और तुम्हें कभी किसी भी कारण एक दुःख होता तो तुम सारी उम्र उसी दुःख से निकल ही नहीं पाते। मन आगर चंचल ना होता तो एक दुःख क्या अनगिनत दुःख और सुख की भावनाओं से निकल नहीं पाते। ऐसे में जीवन बहुत मुश्किल हो जाता।

आजकल depression ( अवसाद ) की बीमारी इसी का उदाहरण समझो। किसी एक विचार, कहानी या कल्पना में उलझ जाता है मन।

ध्यान की स्थिति में इसके ठीक विपरीत करने का प्रयास होता है, मन की चंचलता पर संयम करने का प्रयास होता है।
तुम अभी मन के गुलाम हो, मन जो कहता है वही करते हो/ वही कहते हो। जब मन को अपने वश में करना चाहते हो तो संघर्ष तो होगा ही, मन जो अभी राजा है वह कभी नहीं चाहेगा तुम्हारे अधीन हो जाये। वह तुम्हें कल्पनाओं में, कहानियों में उलझायेगा ही। वह अपने सारे अस्त्र-शस्त्र तुम पर फेकेगा।

शरीर में दर्द की अनुभूति देगा, ध्यान में रुचि न आने देगा,
ध्यान व्यर्थ है ऐसा भी एहसास करायेगा, आलस्य देगा। वह सारे प्रयास करेगा, जिससे वह तुम्हारा शासक बना रहे।

तुम्हें उसके बीच ही थोड़ा थोड़ा अभ्यास करके आगे बढ़ते रहना है। थोड़ा-थोड़ा चलते रहने से ही एक वक्त आयेगा, जब तुम अपने मन पर संयम पाने लगोगे।

◇ अगर ध्यान साधना करते समय नींद आ गई तो। उचित है अथवा अनुचित ?

उत्तर ~ अगर ध्यान साधना के बीच बैठे बैठे सो गये, इसे 100 प्रतिशत अनुचित नहीं कहूँगा। लेकिन हाँ, लाभ भी भरपूर न मिल पायेगा। अगर मन शांत था, शरीर शान्त थी तो नींद आ गयी तो कुछ क्षण के लिए स्थिति ध्यान वाली रहती है। लेकिन जल्दी ही शरीर आलस्य के क्षेत्र में चला जाता है, शरीर झुक जाता है, ध्यान की स्थिति टूट जाती है।

ध्यान के बीच नींद आ जाना इसे ध्यान का बाधा ही जानो।
इसका मूल कारण है शरीर का ज्यादा थका होना, नींद का अभाव व संकल्प का अभाव। ऐसी दिक्कतें शुरुआत में ही आती हैं।

एक स्थिति से समझो इसे, जब ध्यान अथवा योग के लिए पहला कदम उठाते हो तो बुद्ध से कम बनने की ईच्छा नहीं होती तुम्हारी। लेकिन जब बुद्ध के कदमों पर चलने की बारी आती है तो पीछे भाग जाते हो।

ध्यान साधना एक तप है ध्यानस्थ स्थिति को पाने के लिए लोग घर संसार का त्याग करके जंगलों में चले जाते थे। तुम्हें जंगल जाने की जरूरत नहीं लेकिन तप तो करना ही होगा, अपनी आलस्य, अपनी इच्छाओं के विरुद्ध खुद को तपाना ही होगा।

सिर्फ ढेर सारी कहानियाँ सुन लेने, पढ़ लेने अथवा सत्संग कर लेने से बहुत गहरे स्तर पर लाभ न होगा। अगर ध्यान साधना का पूर्ण लाभ लेना चाहते हो परिश्रम करना होगा, अपने मन, अपने इच्छाओं के विरुद्ध संकल्प करना होगा। तुम्हें अपने नींद आदि अन्य शारीरिक इच्छाओं का नियंत्रण करना होगा।

एक और बात समझ लो, यहाँ ध्यान कक्षा में कुछ नया न बताया जायेगा, कोई नई बात बताने को हो भी नहीं सकती। ऐसी कोई बात नहीं जिसे बुद्ध ने न कह दिया हो, हमारे ऋषियों ने पहले न समझाई हो। यहाँ बस उन पद चिन्हों पर चलना बताया जायेगा और चलना तुम्हें स्वयं ही होगा।

अगर कोई प्रश्न हो तो telegram/Instagram के माध्यम से पूछ सकते हो।

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