बहुत खुबसूरत था वो सूखा गुलाब वो नीली गुलाब में सिमटा लाल गुलाब, जो आज मैने अपने डायरी से निकाला । बड़े ही सम्भाल के रखा था उसे कई यादे जुड़ी थी जिससे, आज दिल की आवाज ने उसे पुकारा। सुख गयी थी सारी पंखुड़ियां खुश्बू अब भी भीनी-भीनी सी आ रही थी, अपनी खुश्बू से उसने पन्नो को था सवारा। तोड़ के लायी किसी डाली से सजा दिया फिर अपनी डायरी में वो खुद को वही पर था निखारा। देखती थी उसे हर बार जब पलटती थी पन्ने मेरी डायरी की, वो एक अहम निसानी था तुम्हारा । आज फिर से "कहकशां" सारी यादों के साथ कैद कर देती हूं तुम्हे वही पर, ये सूखा गुलाब ही नही , मेरी दुनिया है सारा । कहकशां 440 viewsकहकशां, 18:29