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कभी किसी रास्ते पर ऐसा जाऊं कि वापस न आऊं तो कैसा हो! कभी मैं | Gulzar Talks

कभी किसी रास्ते पर ऐसा जाऊं कि वापस न आऊं तो कैसा हो!
कभी मैं तुझे मिलने बुलाऊँ औऱ ख़ुद मिलने न आऊं तो कैसा हो!
कभी तुम्हें महफ़िल में ले जाऊं और ख़ुद महफ़िल में खो जाऊं तो कैसा हो।
कभी तुम्हें ख़ुद के लिए बेचैन बनाऊं और ख़ुद चैन से सो जाऊं तो कैसा हो।
कभी मैं ख़ुद को दिखाऊँ और तुम्हें तुमसे मिलाऊँ तो कैसा हो।
कभी तुम्हें ख़ुद को बेबस बताऊं और फिर बेपनाह प्यार जताऊं तो कैसा हो।
कभी तुम्हें अपनी मोहब्बत बताऊं और फिर मुकर जाऊं तो कैसा हो।