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मूल श्लोकः तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः।विस्मयो | श्रीमद्भगवद्गीता • Shrimad Bhagwat Geeta

मूल श्लोकः
तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः।विस्मयो मे महान् राजन् हृष्यामि च पुनः पुनः।।18.77।।