2021-08-22 19:38:09
एक राखी जो पीछे छूट गई"रक्षाबंधन के पुनीत पर्व की आप सबको बधाई" जाने आज के दिन यह शुभकामना कितने अरबों बार इंटरनेट के माध्यम से विश्व भर के लोगों में पहुंची होगी। बहन का भाई की कलाई पर राखी बांधना और भाई का बहन को खर्ची देना और उसके बाद बहन की रक्षा की प्रतिज्ञा करना; मुख्य प्रचलित रूप यही दिखाई पड़ता है।
हमें जबकि इसके विपरीत कुछ दिनों से ध्यान इस पर्व के इतिहास पर भी बार-बार जा रहा था, सो विचार चला कि क्यों ना कुछ पंक्तियां इसके इतिहास को टटोलते हुए इस त्यौहार के मुख्य प्रयोजन प्रति सबका ध्यान आकर्षित करने हेतु लिखी जाएं।
इस जन्म की यह बहुत बड़ी खुशकिस्मती रही है कि जिस ईश्वर को सारा संसार पूजता है, जिन देवताओं को पूजता है, उन दोनों की यथार्थ जीवन कहानी अपने सामने देखता हूँ। हमारे सभी त्यौहार उनकी जीवन कहानी से बहुत करीब से जुड़े हुए हैं। और रक्षा बंधन उन सबमें प्रमुख है। इसलिए यह पुण्य प्रदायक त्यौहार और विष तोड़क त्यौहार भी कहलाता है।
पुण्य शब्द बहुत करके धर्म के कर्मकांडों से जोड़कर देखा जाता है। कुछ लोग समझते कि भिखारी को दान लिया, या फिर लंगर आयोजित कर के भूखों को तृप्त कर दिया - यह पुण्य है। लेकिन यह यथार्थ पुण्य नहीं है क्योंकि ऐसा पुण्य करने से भिखारी या भूखा अपनी हीन स्थिति को ही वास्तविक और प्राकृतिक मान लेता है और उससे संघर्ष करने से इनकार कर देता है। इसके ठीक विपरीत, पुण्य किसी को हीनता नहीं स्वीकार करा सकता। पुण्य शक्तिहीन आत्मा को समय प्रमाण शक्ति देना, समय प्रमाण गुण देना, समय प्रमाण विवेक जगाने का कार्य करता है।
रक्षा बंधन में विष तोड़क पर्व कहने का भी बहुत महान महत्व है। विष का भाव कोई पदार्थ या भोजन में मिलने वाले विष से संबंध में नहीं है। यह वही विष है जो कि मन में पनपता हुआ हमारी वाणी, व्यवहार व कर्म में छलक ही पड़ता है और न चाहते हुए भी अनेक प्रकार के शत्रु पैदा कर लेता है। यह अनेक प्रकार की मानसिक व शारीरिक पीड़ा का कारण बनता है।
रक्षाबंधन के अवसर पर पहला पहला पुण्य भी स्वयं प्रति ही करना होता है और पहला पहला विष भी अपना ही तोड़ना पड़ता है जिसके फलस्वरूप आत्मा पवित्र बनती है। ऐसे महान पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
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