2023-09-23 07:26:41
The Poem:
उसकी आँखें मुझको देख रही है...
हां उसकी आँखें मुझको देख रही है
मौन लबो से भी कुछ बोल रही है
क्या हुआ भारत माँ के पुत्रों को
उनके चरित्र को वह तोल रही है...
शरीर जीवित नही आज उसका
बलात्कार में वह नष्ट हुआ
नोचा उसे कामी कुत्तों ने
और यौवन उसका भृष्ट किया..
लेकिन तस्वीर से उसकी सामना होता रहता है
संवाद आत्माओं का होता रहता है
ज़्यादा कुछ तो नही कहती है वो
पर दिल उसका अब भी रोता रहता है...
सहोदर नही थी पर बहन हमारी है
मरने के बाद बनी जान से प्यारी है
जो जीवित है अब हमें उन्हें बचाना है
मुश्किल में आज भी लाखों बेचारी है..
वो कहती है कि भैया
क्यों भोगों में बहकर निराश पड़े हो
योद्धा कौन है ऐसे जो हताश लड़े हो
निकलों अब इन विकारो के जंजाल से
बहुत गिर गए अब तो खड़े हो...
ज़िंदा लोगो की नही मानी तुमने
तो "अशरीरी" की मान लो
इन नश्वर उत्तेजनाओं में कुछ नही है
मेरी यह शिक्षा अच्छे से तुम जान लो...
एक संवेदनशील अंग के वहशीपन ने
देखों मेरा यह हाल बनाया है
कहाँ पूजते है वे नारी को
बस उन्होंने भोग का माल बनाया है..
मात्र क्षणिक आवेग ने ही
किसी माँ के बेटे को दरिंदा बना दिया
भूल गए वे किसी बहन के भाई है
और देखों मेरी मौत का फंदा बना दिया..
अच्छा भाई तुम बताओ
तुम्हें मैं कैसी लगती हूँ ?
पहले ख़ुद को मैं रमती थी
पर अब नही सजती हूँ..
उघड़ी हुई मेरी निजता है
कहाँ कुछ भी अब जँचता है
जिसे मैं छिपाती थी बड़े ध्यान से
वह तन भी अब नही दिखता है..
अर्धनग्न शरीर है मेरा
गुप्तांग भी निर्वस्त्र हुए
वासना युक्त निर्मम प्राणी के
अंग अंग मेरी म्रत्यु के शस्त्र हुए..
आत्मा तो मेरी पहले ही मार चुके थे
तन को फिर उन्होंने जलाया था
भैया क्या बीती है मुझ पर तब
मेरा रोम रोम चिल्लाया था..
बोल रही है तुम्हारे शब्दों के ज़रिए
न चाहते हुए जो जीवन से हारी है
भाई मैं कोई अकेली नही हूँ
मेरे साथ यह भीड़ बड़ी सारी है..
हां उसकी आँखें मुझको देख रही है
मौन लबो से भी कुछ बोल रही है
क्या हुआ भारत के माँ पुत्रों को
उनके चरित्र को वह तोल रही है..
वो कहती है कि,
भाई तुम लिखते चलो
अब मैं तुमको सब लिखवाऊंगी
क्या हम सारी बहने चाहती
वो हर बात बताऊंगी...
मत झिझकों तुम
अब कलम यूँ ही चलने देना
जग को मोड़ने की चाह तुम्हारी है
इस स्वप्न को अनवरत पलने देना...
छिपा नही किसी से कुछ भी
इस स्मार्ट फोन की दुनिया में
कोने कोने का युवा इन भोगो को जान बैठा है
गलती हुई पर यह इतनी बड़ी नही
जितना इस भृम को सच मान बैठा है..
साथ ही अब तुम खुद पर काम करो
खाकर के ठोकर यूँ न विश्राम करो...
भैया इन गूढ़ रहस्यों को तुम जान लो
हमारी आशीष सदा तुम पर यह मान लो..
अपने वचनों पर सम्भलकर चलने में
भैया थोड़ा तो वक़्त लगता है
लोग सफलता के लिए पसीना बहाते है
तुम्हारी महानता के लिये रक्त लगता है..
गिर जाना कोई हार नही
बिना लड़े तो जय जयकार नही
अपनी बहनो के दर्द को समझो
व्यर्थ हमारा यह चीत्कार नही...
अब चलती हूं भैया
अभी के लिये इतना काफी है
जिसका सन्कल्प हो नारी सुरक्षा का
उसकी हज़ारो गलतियों को माफी है..
बस अब तुम रुकना नही
मन के सामने फिर झुकना नही
पानी की तरह इसे नीचे बहना आता है
पर तुम तो अनन्त हो भैया
काम क्रोध का वेग तुम्हें सहना आता है..
अब
उठो तुम और सफलता की आस करो
पक्का तुम खुद संग ईश्वर पर विश्वास करो
दी है अनन्त सामर्थ्य तुमको उन्होंने
इसीलिये अब
फिर सच्चा प्रयास करो...!
फिर सच्चा प्रयास करो...! धन्यवाद
जॉइन कीजिये:
http://T.me/brahmacharya
शिक्षा:- प्यारे युवा साथियों एक महान विचारक ने कहा है, कि किसी राष्ट्र को यदि बिना युद्ध किये ही हराना हो। तो उनकी युवा पीढ़ी में "व्यभिचार और अश्लीलता" को फैला दो। चरित्र से गिरा हुआ राष्ट्र खुद ही गर्त में चला जाएगा
आज जिस तरह देश में चहुँ ओर मासूम युवाओं के लिये distractions बढे है। ऐसे में सामाजिक अपराध में भी वृद्धि होती है। गलत संगति युवाओं का तो नाश करती ही है, लेकिन उनकी तृष्णाएं किसी मासूम का जीवन भी राख में मिला देती है।
आज स्मार्टफोन की दुनिया में किसी से कुछ भी छिपा नही है। लेकिन कुछ छिप जाता है, तो वह वो दर्द है। जो सम्भवतः "बलात्कार से पीड़ित महिलाएं म्रत्यु के साथ" छिपा ले जाती है।
इस संवेदनशील कविता के भीतर उसी अदृश्य दर्द को महसूस कराने का प्रयास किया है। ताकि हम समाज को और भी अधिक पवित्र बना सके।
क्योंकि समाज में अपराध रोकने का कार्य सिर्फ न्यायपालिका, प्रशासन, और सरकार के अकेले का
नही है । बल्कि एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में समाज में बेहतर मानसिकता की स्थापना के लिये यह दायित्व हमें भी निभाना होगा । यदि यह कविता आपके ह्रदय को स्पर्श करती है, तो इसे अपने एक साथी को ज़रूर शेयर करें। आपका प्रत्येक शेयर किसी व्यक्ति की मानसिकता को बदल सकता है...
ओनली One शेयर For Beautiful society...
12.8K viewsedited 04:26