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श्रीमद्भागवत गीता अध्याय ५ - कर्म सन्यास योग (भक्ति-युक्त ध् | Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

श्रीमद्भागवत गीता

अध्याय ५ - कर्म सन्यास योग

(भक्ति-युक्त ध्यान-योग का निरूपण)

सभी इन्द्रिय-विषयों का चिन्तन बाहर ही त्याग कर और आँखों की दृष्टि को भोंओं के मध्य में केन्द्रित करके प्राण-वायु और अपान-वायु की गति नासिका के अन्दर और बाहर सम करके मन सहित इन्द्रियों और बुद्धि को वश में करके मोक्ष के लिये तत्पर इच्छा, भय और क्रोध से रहित हुआ योगी सदैव मुक्त ही रहता है

ऎसा मुक्त पुरूष मुझे सभी यज्ञों और तपस्याओं को भोगने वाला, सभी लोकों और देवताओं का परमेश्वर तथा सम्पूर्ण जीवों पर उपकार करने वाला परम-दयालु एवं हितैषी जानकर परम-शान्ति को प्राप्त होता है।

इस प्रकार उपनिषद, ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र रूप श्रीमद् भगवद् गीता के श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद में कर्मसांख्य-योग नाम का पाँचवाँ अध्याय संपूर्ण हुआ॥

@bhagwat_geetakrishn