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पुस्तकस्था तु या विद्या,परहस्तगतं च धनम्। कार्यकाले समुत्तपन्न | Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

पुस्तकस्था तु या विद्या,परहस्तगतं च धनम्।
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम्।।

किसी पुस्तक में रखी विद्या और दूसरे के हाथ में गया धन। ये दोनों जब जरूरत होती है तब हमारे किसी भी काम में नहीं आती।