मिलो तो सही.. कभी मिलो तो फुर्सत से थोड़ी खुद की मर्जी थोड | Ankahi Bateein🙃
मिलो तो सही..
कभी मिलो तो फुर्सत से
थोड़ी खुद की मर्जी थोड़ी उसकी कुर्बत से...
तुम मिलो तो ऐसे मिलो,, कोई और मिलने आ ना सके...
तुम्हें देखूं तो ऐसे देखूं,,, कि कोई और देखा जा ना सके...
ए जान तुम आओ तो जरा बहार लेकर...
महकता बहकता नया संसार लेकर...
जो मिलना मुमकिन नही इस जहां में..
तो फिर मिलेंगे नया अवतार लेकर...
ओ प्रिय जो आना तो वक्त, लेते आना...
कुछ कहना है तुमसे ,जरा दिल ,सख्त लेते आना..
ये नगमे ,ये ग़ज़ल जो तुम्हे भेजा करता था...
दरीचे में पड़े वो अवाचित,, पत्र लेते आना...
अरे जान जरा वक्त लेते आना...
सुनो प्रियतमा,
एक आखिरी गुजारिश करता हूं..
हां ये सच है ,मैं तुमपे मरता हूं..
कभी फुर्सत से मिलो तुम मुझको वहां..
न शाम होने की फिकर, ना घर जाने का डर हो जहां...
दूजा जिधर कोई और न हो..
मैं रहूं , तुम रहो , अलग कोई शोर न हो ...
बीते किस्से, अच्छे लम्हे ,अनकही सी बातें हो...
हाथो में हाथ रहे और सुहानी रातें हों.....